प्रेम विस्तार है
,स्वार्थ संकुचन है
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aur madad gar bhi hai dunya me sabhi
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प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन
स्वार्थ का दायरा बहुत बहुत छोटा है | स्वार्थ की भावना मनुष्य को मतलबी बनाता है | स्वार्थ से लोग मरते है , और अपना जीवन दूसरों से जल-जल कर निकालते है | स्वार्थ मानव को गलत रास्ते और सबसे दूर ले जाता है | मनुष्य का स्वार्थी मन किसी की खुशी नहीं देख सकता | स्वार्थ के रास्ते चलने पर हमें कुछ हासिल नहीं होता | स्वार्थ संकुचन , जो लोग मतलबी और स्वार्थी होते है , वह लोग हमेशा दूसरों के साथ दिखावे का प्रेम करते है और मतलब के लिए प्रेम का नाटक करते है | ऐसे लोगों के पीछे हमेशा बदले और स्वार्थ की भावना होती है |
प्रेम का दायरा बहुत बड़ा है | प्रेम जीवन का सिद्धांत है, वह जो प्रेम करता है जीता है| प्रेम नाम से पता चल रहा है , आपस में प्यार , भावना | प्रेम से हम सब का दिन जीत सकते है और सब कुछ हासिल कर सकते है | स्वामी विवेकानंद जी के बोल है , प्रेम विस्तार है |
प्रेम के जरिए हम जीवन में दुःख को भी हरा देते है | प्रेम में ऐसीशक्ती है जो सबको एक साथ मिलाकर रखती है | हमें सबके साथ प्रेम के साथ रहना चाहिए | जो मनुष्य प्रेम से रहता है , प्रेम को बांटता है | अर्थात वही मनुष्य जीवन आनन्द से व्यतीत करता है |