प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
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Answer :-अपने मनपसंद के कपड़े पहनना सबकी अपनी पसंद होती है। कोई कुछ भी पहने इस पर किसी को कुछ कहने का हक तो नहीं है परंतु पोशाक की विचित्रता पर हंसी तो आ ही जा सकती है। मेरे पड़ोसी लगभग 80 वर्ष के हैं; दुकानदार है और वर्षों से यहीं रह रहे हैं। उनकी पीली पैंट पर भड़कीली लाल कमीज और सिर पर हरी टोपी तुरंत सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। पता नहीं उनके पर इस तरह के रंग बिरंगे पोशाके कितनी है पर जब जब वह बाहर जाते हैं सड़क पर चलती फिरती होली के रंगों की बहार लगते हैं। जो भी उन्हें पहली बार देखता है वह तो बस उनकी और देखता ही रह जाता है पर इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ता।
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