Hindi, asked by 12ananyasharma1234, 9 months ago

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए​

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Answered by Anonymous
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प्रेमचंद के मुसकराने में लेखक को यह व्यंग्य नज़र आता है कि मानो प्रेमचंद उनसे कह रहे हों कि मैंने भले ही चट्टानों से टकराकर अपना जूता फाड़ लिया हो पर मेरे पैर तो सुरक्षित हैं और चट्टानों से बचकर निकलने वाले तुम लोगों के जूते भले ही ठीक हों पर तलवे घिसने के कारण तुम्हारा पंजा सुरक्षित नहीं है और लहूलुहान हो रहा है।

Answered by manapragadakids
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प्रेमचंद के मुसकराने में लेखक को यह व्यंग्य नज़र आता है कि मानो प्रेमचंद उनसे कह रहे हों कि मैंने भले ही चट्टानों से टकराकर अपना जूता फाड़ लिया हो पर मेरे पैर तो सुरक्षित हैं और चट्टानों से बचकर निकलने वाले तुम लोगों के जूते भले ही ठीक हों पर तलवे घिसने के कारण तुम्हारा पंजा सुरक्षित नहीं है और लहूलुहा

प्रेमचंद को उन व्यक्तियों के चलने की चिंता सता रही है जो समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों से बचकर निकल जाते हैं और संघर्ष नहीं करना चाहते।न हो रहा है।

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