Hindi, asked by patelravinath78, 9 hours ago

प्रेमचंद को पढ़ाई का चस्का कब लगा

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Answered by abhiabhilasha79790
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वह असहयोग आंदोलन का ज़माना था, प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे. बेहद तंगी थी, बावजूद इसके गांधी जी के भाषण के प्रभाव में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था.

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का गोरखपुर से गहरा संबंध है. उनके बचपन के चार वर्ष यहीं बीते तो जवानी के साढ़े चार वर्ष भी. वह गोरखपुर में पढ़े और यहां के नॉर्मल स्कूल में बच्चों को पढ़ाया भी. यहीं उनकी मुलाकात महावीर प्रसाद पोद्दार से हुई, जिन्होंने अपने कलकत्ता स्थित प्रकाशन हिन्दी पुस्तक एजेंसी से प्रेमचंद की प्रेम पचीसी, सेवासदन और प्रेमाश्रम को प्रकाशित किया.

गोरखपुर में ही उनकी मशहूर शायर रघुपति सहाय फिराक़ से दोस्ती हुई. गोरखपुर में ही उन्होंने गांधी जी का भाषण सुनने के बाद सरकारी नौकरी छोड़ दी. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने जीवन-निर्वाह के लिए करघे का कारखाना चलाया और गोरखपुर से हिन्दी व उर्दू में अखबार निकालने की योजना बनाते रहे. अखबार निकालने की योजना सफल न हो पाने के बाद वह अपने गांव लमही चले गए.

प्रेमचंद गोरखपुर शहर में पहली बार 1892 में आए जब उनके पिता अजायब लाल का तबादला गोरखपुर हुआ. वह लगभग चार वर्ष तक यहां रहे और रावत पाठशाला और फिर मिशन स्कूल में आठवीं जमात तक पढ़ाई की. यहीं पर उन्हें तिलस्मी और ऐय्यारी की किताबें पढ़ने का जबरदस्त चस्का लगा, जिसने कहानीकार प्रेमचंद को अंकुरित किया.

प्रेमचंद लिखते हैं, ‘रेती पर एक बुकसेलर बुद्धिलाल नाम का रहता था. मैं उसकी दुकान पर जा बैठता था और उसके स्टाक के उपन्यास ले-लेकर पढ़ता था. मगर दुकान पर सारे दिन तो बैठ न सकता था, इसलिए मैं उसकी दुकान से अंग्रेजी पुस्तकों की कुंजियां और नोट्स लेकर अपने स्कूल के लड़कों के हाथ बेचा करता था और उसके मुआवजे में दुकान से उपन्यास घर लाकर पढ़ता था. दो-तीन वर्षों में मैंने सैकड़ों उपन्यास पढ़ डाले होंगे.’

प्रेमचंद ने महज 13 वर्ष की उम्र में गोरखपुर में 2-3 वर्षों में 25 हजार पन्नों वाली मौलाना फैजी की तिलस्म-ए-होशरुबा, रेनाल्ड की मिस्ट्रीज ऑफ द कोर्ट ऑफ लंदन की पचीसों किताबों के उर्दू तर्जुमे, मौलना सज्जाद हसन की हास्य कृतियां, उमरावजान अदा के लेखक मिर्जा रुसवा और रतनाथ सरशार के ढेरों किस्से पढ़ डाले.

नवलकिशोर प्रेस से छपे पुराणों के उर्दू अनुवाद भी उन्होंने पढ़े. गोरखपुर में ही उन्होंने अपनी पहली कहानी लिखी जो उनके मामा पर थी. यह उनके मामू के प्रेम प्रसंग और उसे लेकर घटी सच्ची घटना पर थी.

दूसरी बार, प्रेमचंद गोरखपुर में गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल में सहायक अध्यापक होकर 18 अगस्त 1916 को आए. इसके पहले वह बस्ती में तैनात थे. वह 18 अगस्त की शाम को बस्ती से गोरखपुर पहुंचे थे. उसी रात उनके बड़े बेटे श्रीपत राय का जन्म हुआ. तब उन्हें सरकारी क्वार्टर नहीं मिल पाया था.

वह नॉर्मल स्कूल के बरामदे में ही ठहर गए. छात्रों और अध्यापकों ने पूरी मदद की. जब प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी को प्रसव वेदना हुई तो एक अध्यापक उन्हें अपने आवास ले गए. रात दस बजे श्रीपत राय का जन्म हुआ.

दो महीने प्रेमचंद उसी अध्यापक के आवास पर रहे जबकि अध्यापक उनको मिले आवास में चले गए. दो महीने बाद प्रेमचंद सरकारी क्वार्टर में आए. गोरखपुर के बेतियाहाता में प्रेमचंद पार्क के अंदर यह सरकारी भवन आज भी वैसे ही स्थित है और इसे प्रेमचंद निकेतन के नाम से जाना जाता है.

Answered by abhigyan238632
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Answer:

प्रेमचंद्र तिलस्मी और ऐय्यारी पुस्तकों को पढ़ने के बेहद ही शौकीन थे। इन किताबों को पढ़ने का चस्का उन्हें गोरखपुर के रावत पाठशाला में पढ़ने के दौरान लगा।

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