प्रेमचंद कैसे साहित्यकार थे?
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आदर्शोन्मुख यथार्थवाद
Explanation:
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद (Idealistic Realism) आदर्शवाद तथा यथार्थवाद का समन्वय करने वाली विचारधारा है। आदर्शवाद और यथार्थवाद बीसवीं शती के साहित्य की दो प्रमुख विचार धाराएँ थीं। आदर्शवाद में सत्य की अवहेलना या उस पर विजय प्राप्त कर के आदर्शवाद की स्थापना की जाती थी। जबकि यथार्थवाद में आदर्श का पालन नहीं किया जाता था, या उसका ध्यान नहीं रखा जाता था। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद में यथार्थ का चित्रण करते हुए भी आदर्श की स्थापना पर बल दिया जाता था। इस प्रवृत्ति की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण संकेत प्रेमचन्द का है। उन्होंने कथा साहित्य को यथार्थवादी रखते हुए भी आदर्शोन्मुख बनाने की प्रेरणा दी और स्वतः अपने उपन्यासों और कहनियों में इस प्रवृत्ति को जीवन्त रूप में अंकित किया
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यथार्थवादी
प्रेमचंद यथार्थवादी साहित्यकार थे |
- प्रेमचंद कला के प्रति यथार्थवादी होते हुए भी संदेश के प्रति आदर्शवादी हैं। एक आदर्श प्रतिष्ठा प्राप्त करना उनके सभी उपन्यासों का लक्ष्य है। ऐसा करने में भले ही चरित्र का स्वभाव नष्ट हो जाए, लेकिन वह अपने सभी पात्रों को आदर्श तक पहुंचने के लिए बाध्य जरूर करेगा।
- धनपत राय श्रीवास्तव, प्रेमचंद उपनाम से लिखते हैं, भारत के सबसे महान हिंदी और उर्दू लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद और नवाब राय के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें रोमन सम्राट के नाम से भी नवाजा गया था। उन्हें सर्वप्रथम इसी नाम से प्रसिद्ध बांग्ला उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
- प्रेमचंद का मानना है कि साहित्य का रूप या विधा जो भी हो, उसका उद्देश्य "हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या" होना चाहिए। वह अपने पिछले युग की आलोचना करता है, जब कल्पना का एकमात्र उद्देश्य "मात्र मनोरंजन" और "अद्भुत कामुकता" का आनंद था। कविता भी "व्यक्तिवाद के रंग" से रंगी हुई थी।
- साहित्य में परम सत्य की रक्षा करनी चाहिए। साहित्य का उद्देश्य इस प्रकार के आदर्शवाद की पूर्ति करता है, क्योंकि कोरे आदर्शवाद से जीते हैं, उनके वातावरण में लाभ और हानि दोनों संभव है। यहाँ तक कि स्वर्ग के विचारों का भी उसके लिए कोई मूल्य नहीं है। सुन्दरता का अस्तित्व कुरूपता पर आधारित है।
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