"प्रेमचंद न जाने क्या-क्या कहलाते थे" पंक्ति के माध्यम से
लेखक ने क्या स्पष्ट करना चाहा है?
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प्रात: काल के भ्रमण से मनुष्य को कितना लाभ है, यह कहने की जरूरत नहीं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं इसका अभ्यास करके इसके लाभों (Benefits) का अनु भव कर सकता है । प्रात: काल जगने और हाथ-मुँह धोकर बाहर टहलने से हमारे शरीर को ताजा ऑक्सीजन मिलती है और फेफड़े (Lungs) स्वस्थ होते हैं । वातावरण (Environment) शांत (Calm) रहता है जिससे मन को शांति और खुशी मिलती है ।
प्रात: काल के खुले वातावरण में टहलने पर मन प्रसन्न होता है, तन मे स्कूर्ति आती है जिससे दिन भर चाहे हम कुछ भी काम करें, उसे शांति, प्रसन्नता तथा साहस से कर सकते हैं । प्रात: कालीन भ्रमण की आदत डालना उनके लिए अधिक उपयोगी (Useful) है, जिन्हें योगासन अथवा अन्य किसी व्यायाम (Exercise) तथा खेल-कूद के लिए समय नहीं मिल पाता है ।
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लेखक प्रेमचंद के बारे में कहता है कि वह महान् कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, न जाने क्या-क्या कहलाते थे। इसके माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि प्रेमचंद के जीवन की यथार्थ स्थिति उनकी लोकप्रियता एवं महान् व्यक्तित्व के बिलकुल विपरीत थी।