Hindi, asked by students781005, 2 months ago

प्र०) महाभारत काल में समाज में अनाचार बढ़ गया था।
क्या आप
इस कथन से सहमत हैं।​

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Answered by akankshakamble6
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Answer:

महाभारत के बारे में कई तथ्य ऐसे हैं जो कम से कम साधारण लोगों को अज्ञात हैं और जिन लोगों को ज्ञात है वे भी इनकी अधिक चर्चा नहीं करते। मैं ऐसे कुछ तथ्यों का उल्लेख कर रहा हूँ जिनकी वेदव्यास रचित महाभारत के प्रामाणिक संस्करणों के अनुसार निर्विवाद रूप से सत्यता है पर जनता में जिनका ज्ञान बहुत कम है।

1- भीष्म पितामह अपने समय में हस्तिनापुर के राजवंश के सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति नहीं थे न ही महाभारत के युद्ध में इस वंश के सबसे वयोवृद्ध योद्धा ही थे। इस राजवंश के सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति महाराज शान्तनु के बड़े भाई बाह्लीक थे जो अपने पुत्र सोमदत्त और पौत्रों भूरि, भूरिश्रवा और शल के साथ धृतराष्ट्र की राजसभा में उपस्थित रहते थे और जो महाभारत के युद्ध के चौदहवें दिन अपने परपोते भीमसेन के हाथों मारे गये।

2- महाभारत के समय लोगों की आयु आजकल के लोगों की आयु की अपेक्षा लम्बी होती थी और अधिक उम्र में भी उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता था। हमारे पास अर्जुन का उदाहरण है जो महाभारत युद्ध के समय कम से कम नवासी वर्ष के थे। (इसलिए कि वे भगवान कृष्ण के समवयस्क थे जिनकी कुल आयु एक सौ पचीस वर्ष थी और उनकी मृत्यु महायुद्ध के छत्तीस वर्ष बाद हुई थी।) इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि विराटनगर के युद्ध के ठीक पहले अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों का वर्णन करते हुए बताते हैं कि पिछले पैंसठ साल से गाण्डीव मेरे पास है। सोचने की बात है कि दस साल की आयु में हस्तिनापुर आने के बाद कुछ काल बालक्रीडाओं में बिताने,पहले कृपाचार्य और फिर द्रोणाचार्य के यहाँ अस्त्र विद्या की शिक्षा लेने(यह लगता है कि दिव्यास्त्रों के प्रयोग में तमाम जटिलताएँ थीं और उनको ढंग से सीखने में कई साल लग सकते थे।) पुनः कुछ दिन हस्तिनापुर में रहने और लाक्षागृह काण्ड के बाद भटकने, इसके बाद कुछ दिन तक इन्द्रप्रस्थ में निवास करके बारह वर्ष का वनवास लेने और उसके बाद अग्निदेव से गाण्डीव प्राप्त करने की घटनाओं के बीतने में अर्जुन के जीवन का कितना समय बीत गया होगा। इन घटनाओं को देखते हुए यह लगता है कि गाण्डीव प्राप्त होने के समय अर्जुन की आयु तीस से भी अधिक ही रही होगी। अतः अर्जुन की आयू विराटनगर के युद्ध के समय पञ्चानबे साल से भी अधिक की रही होगी।

इसी प्रकार यह भी तथ्य विचार में लिया जा सकता है कि भगवान कृष्ण के जन्म के काफी समय पहले ही कंस अपने पिता महाराज उग्रसेन को हटाकर गद्दी पर बैठ गया था। इसका यह अर्थ है कि उग्रसेन कृष्ण से कम से कम पचास वर्ष बड़े रहे होगें। सत्य यह है कि उग्रसेन कृष्ण के पूरे जीवनकाल तक राजा रहे। उनकी आयु अन्तिम समय एक सौ पचहत्तर साल से कम न रही होगी। इसी प्रकार द्रोणाचार्य की आयु दो स्थानों पर चार सौ वर्ष बतायी गयी है। (कुछ लोग सम्बन्धित शब्दों का अर्थ पचासी वर्ष लेते हैं पर इस आयु की महाभारत के अन्य वर्णनों जैसे अर्जुन की आयु से सङ्गति नहीं बैठती।)

भीष्म व बाह्लीक की आयु की कल्पना ही की जा सकती है।

3- महाभारत के समय की तकनीक कई मामलों में बहुत विकसित थी। हम उस समय की टेस्ट ट्यूब बेबी टेक्नोलाजी का प्रसंग ले सकते हैं जिसके द्वारा गान्धारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड से एक सौ एक शिशुओं की उत्पत्ति व्यास के प्रयोग द्वारा की गयी थी। (यह इस टेक्नोलॉजी के प्रयोग का पहला अवसर नहीं था। राजा सगर के इस प्रकार से साठ हजार पुत्र हुए थे। सावित्री द्वारा यमराज से सौ पुत्र और अपने निःसन्तान मातापिता के लिए सौ पुत्र माँगने से लगता है कि इस तकनीक का उपयोग पहले कभी सामान्य रहा होगा।) उस समय दिव्यास्त्रों और विमानों के वर्णन से भी उस समय तकनीक के विकास का प्रमाण मिलता है। (यह वर्णन आया है कि सौभपति शाल्व के पास एक विमान था जिस पर सवार होकर वह द्वारिका पर हमला करने आया था। दिव्यास्त्रों से तो महाभारत पढ़नेवाले परिचित हैं ही।)

3- लोकप्रचलित विश्वास के अनुसार सञ्जय ने धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाया था। पर सच यह है कि सञ्जय महाभारत के युद्ध में लड़ने गये थे और बीच बीच में भीष्म आदि सेनापतियों के मारे जाने पर वे धृतराष्ट्र के पास आकर उन्हें युद्ध का हाल बताते थे। यह लगता है कि युद्ध का हाल बताने के दौरान ही उनकी बुद्धि में अलौकिक ज्ञान आ जाता था जिससे वे युद्ध की हर गतिविधि को बताने में समर्थ हो जाते थे। युद्ध के अन्त में धृष्टद्युम्न और सात्यकि ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें मारने जा रहे थे तभी व्यास ने आकर उन्हें छुड़ाया। दुर्योधन की मृत्यु के बाद ही सञ्जय की यह अद्भुत ज्ञान की शक्ति समाप्त हुई

4- यह एक मिथक है कि युद्ध के चौदहवें दिन की रात में अचानक ही घटोत्कच आया और उसने अपने शिविर में सोते हुए कौरवों पर हमला कर दिया जिसके कारण कर्ण को उस पर इन्द्रशक्ति छोड़नी पड़ी। (दुर्भाग्य से अधिकतर सीरियलों में यही दिखाया जाता है।) सच यह है कि जयद्रथ की मृत्यु के बाद दुर्योधन ने क्रुद्ध होकर द्रोणाचार्य को इसके लिए उपालम्भ दिया तो आहत होकर द्रोणाचार्य ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे अब कवच नहीं उतारेगें और युद्ध तब तक अनवरत चलता रहेगा जब तक या तो उनकी मृत्यु नहीं होगी या उनके शत्रुओं का पराभव नहीं होगा। अतः उस दिन रात में युद्ध बन्द नहीं हुआ। उस रात द्रोणाचार्य और कर्ण ने बड़ा भयङ्कर युद्ध किया तो कर्ण के मुकाबले के लिए घटोत्कच और द्रोणाचार्य के मुकाबले के लिए धृष्टद्युम्न को लगाया गया था। घटोत्कच ने उस युद्ध में कर्ण और कौरव सेना को इस प्रकार त्रस्त कर दिया कि अन्त में कर्ण को शक्ति उसी पर छोड़नी पड़ी। यह भी कहना गलत है कि घटोत्कच उसी दिन युद्ध में आया था। वह पहले दिन से ही युद्ध में था। यह था कि महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उसको उसी दिन दी गयी थी।

5. इन बातों की विस्तृत व्याख्या शान्तिपर्व में की गयी है।

hope will be helpful ☺️

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