प्र.। नीचे दिए गए अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढिए-
अकबर, तानसेन के गुरु हरिदास का गायन सुनने के लिए बहुत उत्सुक थे। लेकिन उनके दिल्ली
आने की कोई उम्मीद न थी और न ही यह भरोसा था कि वृंदावन में कभी वे उनके सामने गाना
गाएँगे। अकबर के बार-बार निवेदन करने पर तानसेन ने एक उपाय सोचा। अकबर साधारण वेश में
वृंदावन पहुंचे और हरिदास की कुटिया के बाहर छिपकर बैठ गए। तानसेन इस बीच कुटिया के भीतर
गुरु के सामने बैठकर गाने लगे। तानसेन ने जानबूझ कर गलती कर दी। शिष्य की भूल सुधारने के
लिए हरिदास खुद गाने लगे। इस तरह सम्राट अकबर ने हरिदास का गायन सुना। लौटते हुए उन्होंने
तानसेन से सवाल किया "मैंने तुम्हें कितनी ही बार गाना गाते सुना है। तुम अच्छा गाते हो, पर फिर
भी ऐसा नहीं गाते जैसा तुम्हारे गुरु गाते हैं। उनका स्वर सौंदर्य कुछ और ही था। आखिर, इसकी क्या
वजह है?"
तानसेन ने कहा "जहाँपनाह, इसकी वजह यह है कि मैं हिंदुस्तान के
बादशाह के लिए गाता हूँ और वे सारी दुनिया के मालिक के लिए गाते हैं।
संगीत में ताकत तभी पैदा होती है जब उसे प्रकृति के लिए और प्रकृति के
बीच बैठ गाया जाए। दरबारों में ऐसे संगीत का जन्म नहीं होता।"
is gadyansh Ka uchit shirsahak baitiye
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पातितोऽपि कराघातै-रुत्पतत्येव कन्दुकः।प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः॥2॥
जिस प्रकार हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, प्रकार सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है। jsjzbzjsbxbbzvzhdhथढरभजडणयबलब
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