Hindi, asked by rajpalthakur, 1 year ago

पुराने होते जा रहे जीवन मूल्यों और नए प्रचालनों के बीच यशोधर पन्त के संघर्ष पर प्रकाश डालिये ।​

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Answered by Human100
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जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट और भौतिकवाद के बढ़ते प्रभाव के साथ ही भ्रष्टाचार भी सुरसा के मुंह की तरह फैल रहा है। परिणाम स्वरूप सरकारी तंत्र से लेकर आम जन मानस में भ्रष्ट आचरण नैतिक पतन की ओर इशारा करता है। व्यवस्था में आत्मचिंतन जबकि नागरिकों में जागरुकता का अभाव है। 21वीं सदी के समाज में सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी इस बुराई से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।

नगर निगम सभागार में रविवार शाम विजिलेंस की ओर से भ्रष्टाचार विषयक कार्यशाला में कुछ ऐसी ही तस्वीर और इससे जुड़ी ढेरों चिंताएं उभरकर सामने आई। नागरिकों ने अपने जीवन में भ्रष्टाचार का सामना करने के अनुभव सामने रखे और निपटने के लिए सुझावों का खाका पेश किया। जबकि सिस्टम से जुड़े लोगों ने भ्रष्टाचार से पार पाने के उपाय सुझाए। बतौर वक्ता मीडियाकर्मी दिनेश मानसेरा ने तंत्र के छोटे स्तर से लेकर राजनीतिक मूल्यों में आ रही गिरावट बयां की। उन्होंने तमाम छोटे-बड़े कारनामों के साथ ही हाल ही में राज्य ही नही वरन देश भर की राजनीति में चर्चित स्टिंग प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि आवाम भ्रष्ट व्यवस्था में खुद को ठगा और बेबस महसूस कर रहा है। डॉ. नीलांबर भट्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार दहेज की तरह दोनों पक्षों में होने वाला एक अलिखित समझौता बन गया है। सरकारी कामकाज का कंप्यूटरीकरण और नई तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से भ्रष्टाचार कम जरूर हो सकता है।

Answered by Anonymous
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जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट और भौतिकवाद के बढ़ते प्रभाव के साथ ही भ्रष्टाचार भी सुरसा के मुंह की तरह फैल रहा है। परिणाम स्वरूप सरकारी तंत्र से लेकर आम जन मानस में भ्रष्ट आचरण नैतिक पतन की ओर इशारा करता है। व्यवस्था में आत्मचिंतन जबकि नागरिकों में जागरुकता का अभाव है। 21वीं सदी के समाज में सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी इस बुराई से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।

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