प्रान तुषातुर के रहे , थोरेहूँ जलपान । पीछे जलभर सहस घट , डारे मिलत न प्रान ।।
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प्रान तुषातुर के रहे , थोरेहूँ जलपान । पीछे जलभर सहस घट , डारे मिलत न प्रान ।
व्याख्या कीजिए।
- उपुर्युक्त पंक्तियां " वृंद जी के दोहे " से ली गई है।
- इन पंक्तियों में वृंद जी कहते है कि थोड़ा सा पानी यदि पीने के लिए मिल जाए तो प्यास के मारे निकलते हुए प्राण बच सकते है परन्तु बाद में यदि हजारों पानी से भरे घड़े बीएच मिल जाए तो छूटे हुए प्राण फिर लौट नहीं सकते।
- कवि वृंद का परिचय :
- उनका पूरा नाम वृंदावन दास था। वे वृंद जाति के भोजक तथा सेवक थे। इनके पूर्वज बीकानेर के रहवासी थे। वृंद जी की माता का नाम कौशल्या तथा पिता का नाम रूप था।
- कवि वृंद कहते है कि संसार की कोई भी वस्तू खर्च करने पर समाप्त हो जाती है परन्तु ज्ञान ऐसी चीज है जिसके भंडार को जितना खर्च किया जाए वह बढ़ता ही जाता है।
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