Hindi, asked by kashmiri79, 8 months ago

। पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए :
(क) 'सोभा-सिंधु' से कवि का आशय क्या है?​

Answers

Answered by deethedevil4444
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Answer:

सोभा-सिंधु न अंत रही री / सूरदास

Explanation:

राग कल्यान

सोभा-सिंधु न अंत रही री ।

नंद-भवन भरि पूरि उमँगि चलि, ब्रज की बीथिनि फिरति बही री ॥

देखी जाइ आजु गोकुल मैं, घर-घर बेंचति फिरति दही री ।

कहँ लगि कहौं बनाइ बहुत बिधि,कहत न मुख सहसहुँ निबही री ॥

जसुमति-उदर-अगाध-उदधि तैं, उपजी ऐसी सबनि कही री ।

सूरस्याम प्रभु इंद्र-नीलमनि, ब्रज-बनिता उर लाइ गही री ॥

भावार्थ ;-- आज शोभा के समुद्र का पार नहीं रहा । नन्दभवन में वह पूर्णतः भरकर अब व्रज की गलियों में उमड़ता बहता जा रहा है । आज गोकुल में जाकर देखा कि (शोभा की अधिदेवता लक्ष्मी ही) घर घर दही बेचती घूम रही है । अनेक प्रकार से बनाकर कहाँ तक कहूँ, सहस्त्रों मुखों से वर्णन करने पर भी पार नहीं मिलता है । सूरदास जी कहते हैं कि सभी ने इसी प्रकार कहा कि यशोदा जी की कोखरूपी अथाह सागर से मेरे प्रभुरूपी इन्द्रनीलमणि उत्पन्न हुई, जिसे व्रजयुवतियों ने हृदय से लगाकर पकड़ रखा है (हृदय में धारण कर लिया है।)

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