प्राणस्य श्रेष्ठतम इति पाठे तस्मिन् पाठे प्रदतानाम् इंद्रियाणा नामानि तेषां कायाणि च लिखत
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किसलिये सत्मार्गमें स्थित साधुओंका परित्राण अर्थात् ( उनकी ) रक्षा करनेके के लिये पापकर्म करनेवाले दुष्टोंका नाश करनेके लिये और धर्मकी अच्छी प्रकार स्थापना करनेके लिये मैं युगयुगमें अर्थात् प्रत्येक युगमें प्रकट हुआ करता हूँ
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