प्र० प्राचीन समय से गुरुकुल की शिक्षा और वर्तमान समय के विद्यालय में अंतर बताते हुए अपने मित्र
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।। प्राचीन समय से गुरुकुल की शिक्षा और वर्तमान समय के विद्यालय में अंतर बताते हुए अपने मित्र को ।।
प्रिय मित्र राहुल...
सप्रेम स्नेह
तुम्हारा पत्र मिला। तुमने मुझसे आज के विद्यालय और प्राचीन काल के गुरुकुल की शिक्षा में अंतर के विषय में पूछा था। आज तुम्हें बताता हूँ कि प्राचीन काल के गुरुकुल और आज के विद्यालयों की शिक्षा में क्या अंतर था। हमारे भारत में प्राचीन काल में शिक्षा का केंद्र गुरुकुल ही होते थे, तब आज की तरह विद्यालय नही होते थे। विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल में स्थाई रूप से तब तक निवास करते थेस जब तक कि वे पूर्ण रूप से शिक्षित नहीं हो जाते थे अर्थात उन्हें अपना घर-बार छोड़कर गुरुकुल में ही रहना पड़ता था। इस तरह वे घर और समाज से अलग एक सन्यासी की तरह जीवन जीते थे।
गुरुकुल का वातावरण बेहद अनुशासित और सादगी भरा होता था। गुरुकुल का गुरु ही सर्वोपरि होत था और उनकी आज्ञा का पालन करना गुरुकुल के प्रत्येक शिष्य का परम कर्तव्य होता था। गुरुकुल में परिश्रम एवं अनुशासन का बेहद महत्व था। विद्यार्थियों को अपने सारे कार्य स्वयं करने होते थे, इस तरह उनमें कर्मठता की भावना विकसित होती थी। उन्हें परिश्रम का महत्व आरभ से ही समझ में आ जाता था और अनुशासित जीवन जीने की आदत पड़ जाती थी। गुरुकुल में केवल शिक्षा-दीक्षा पर ही ध्यान दिया जाता था और वहां पर मनोरंजन आदि के कोई साधन उपलब्ध नहीं होते थे।
हमारे आज के विद्यालय शिक्षा की स्थिति ऐसी नहीं है। विद्यार्थी सुबह घर से विद्यालय आते हैं, दिन भर पढ़ाई करते हैं और शाम को अपने घर चले जाते हैं। फिर वे घर में खेलते हैं, अपना मनोरंजन करते हैं, अपने माता-पिता परिवार के साथ रहते हैं। इस तरह विद्यार्थी समाज में रहते हुए शिक्षा प्राप्त करता हैं। आज के विद्यालय शिक्षा में इतना कठोर अनुशासन नहीं है जितना गुरुकुल की शिक्षा में होता था। आज की विद्यालयी शिक्षा में विद्यार्थियों को उतना शारीरिक श्रम भी नहीं करना पड़ता, जितना गुरुकुल के विद्यार्थियों को करना पड़ता था।
मेरे विचार में प्राचीन काल में गुरुकुल की शिक्षा उस समय के अनुसार प्रासंगिक और महत्वपूर्ण थी। आज का समय बदल चुका है और आज के समय में विद्यालयी शिक्षा प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है। दोनों तरह की शिक्षा पद्धति में अंतर तो है, लेकिन दोनों का अपने समय के अनुसार अपना-अपना महत्व है।
आशा है कि तुम मेरी बात समझ गये होगे। यदि कोई शंका हो तो पत्र में लिखना।
तुम्हारा मित्र...
अजय
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