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प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीची
प्रारभ्य विघ्नविहता: विरमतिमा
विघ्नः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना: न परित्यजनिा
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Answer:
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः ।
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ॥२७॥
prArabhyate na khalu vighnabhayena nIchaiH
prArabhya vighnavihatA viramanti madhyAH ||
vighnaiH punaH punarapi pratihanyamAnAH
prArabdhamuttamaguNA na parityajanti || 27||
भर्तृहरि नीति शतक श्लोक 27 का भावार्थ:
इस संसार में नीच, मध्यम और उत्तम ये तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं; जिनमे से नीच प्रकार के मनुष्य तो आने वाली विध्न-बाधाओं के डर मात्र से ही किसी कार्य की शुरुआत नहीं करते; और मध्यम प्रकार के मनुष्य कार्य की शुरुआत तो करते हैं लेकिन छोटी-छोटी परेशानियों के आते ही काम को अधूरा छोड़ देते हैं; परन्तु उत्तम मनुष्य ऐसे धैर्यवान होते हैं जो बार-बार विपत्तियों के घेर लेने पर भी अपने हाथ में लिए गए काम सम्पूर्ण किये बिना कदापि नहीं छोड़ते।