प्रेरणा दत
तमाम दोपहर-
मैं तुम्हारे किनारे घूमता रहा
बिना यह जाने कि तुम कहाँ से आयी हो
और किससे मिलने जा रही हो
तुम्हारी कितनी थाह है।
मुझे केवल वे लहरियाँ अच्छी लगती रहीं
जो तुममें उठती रहीं-
शप में दिलमिलातीं खिलखिलाती
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bhi pahle thanks kro tbhi answer dunga
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