Hindi, asked by dhavalsuthar640, 3 months ago

प्रासादों के कनकाभ शिखर होते._ के ही घर । (गरुड़ों / कबूतरों)​

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Answered by bhatiamona
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प्रासादों के कनकाभ शिखर होते._ के ही घर । (गरुड़ों / कबूतरों)​

उत्तर :

प्रासादों के कनकाभ शिखर होते __कबूतरों__ के ही घर।

प्रासादों के कनकाभ शिखर होते कबूतरों के घर ये पंक्तिया प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 'रश्मिरथी' कविता की पंक्तियां है।

ये पंक्तियां इस प्रकार हैं...

“प्रासादों के कनकाभ शिखर,

होते कबूतरों के ही घर,

महलों में गरुड़ ना होता है,

कंचन पर कभी न सोता है.

रहता वह कहीं पहाड़ों में,

शैलों की फटी दरारों में.

इन पंक्तियों का अर्थ है कि कवि का कहना है कि राज महलों के शिखरों पर केवल कबूतरों का ही वास होता है। जो गरुड़ होते हैं वह तो जंगल में विचरण करते हैं । गरुड़ों को सोने के महलों में सोने की आदत नहीं होती है। उनका ठिकाना पहाड़ों में है। वह पहाड़ों की फटी हुई दरारों में रहना पसंद करते हैं। वह स्वच्छंद होकर विचरण करना पसंद करते हैं। उन्हें संघर्षों से कठिनाइयों से जूझने की आदत होती है। उन्हें सोने के महलों में रहने की कोई ख्वाहिश नहीं होती।

कवि ने यह तुलनात्मक उदाहरण मनुष्यों के संदर्भ में दिया है। मनुष्यों को राजसी वैभव की कोई कामना नहीं होती। जो वीर होते हैं, जो साहसी होते हैं, वह राजसी वैभव को ठुकरा कर संघर्षों और कठिनाइयों वाली राह को चुनते हैं।

#SPJ2

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Answered by himanshu121190
0

प्रासादों के कनकाभ शिखर होते कबूतरों के ही घर ।

उपरोक्त दी गयी पंक्ति, रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित कविता "रश्मिरथी" से ली गयी हैं |

“प्रासादों के कनकाभ शिखर,

होते कबूतरों के ही घर,

महलों में गरुड़ ना होता है,

कंचन पर कभी न सोता है.

रहता वह कहीं पहाड़ों में,

शैलों की फटी दरारों में.

होकर सुख-समृद्धि के अधीन,

मानव होता निज तप क्षीण,

सत्ता किरीट मणिमय आसन,

करते मनुष्य का तेज हरण.

नर वैभव हेतु लालचाता है,

पर वही मनुज को खाता है.

चाँदनी पुष्प-छाया मे पल,

नर भले बने सुमधुर कोमल,

पर अमृत क्लेश का पिए बिना,

आताप अंधड़ में जिए बिना,

वह पुरुष नही कहला सकता,

विघ्नों को नही हिला सकता.

उड़ते जो झंझावतों में,

पीते जो वारि प्रपातो में,

सारा आकाश अयन जिनका,

विषधर भुजंग भोजन जिनका,

वे ही फानिबंध छुड़ाते हैं,

धरती का हृदय जुड़ाते हैं.”

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