(पारास्यातया का
mo
(iii) संघों की
(iv) पराजय की
(खंड-ख)
प्रश्न -2निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिये -
(5)
शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता पर बहुत कुछ कहा जा सकता है परंतु यह भी ध्यान देने की बात है कि
जितने सारतत्व जीवन के लिए अनिवार्य है, वे सब मिट्टी से ही मिलते हैं |जिन फूलों को हम अपनी प्रिय वस्तुओं का
उपमान बनाते हैं, यह सब मिट्टी की ही उपज है |रूप, रस, गंध, स्पर्श इन्हें कौन संभव करता है? माना कि मिट्टी और धूल में अंतर है
लेकिन उतना ही जितना शब्द और रस में है, देह और प्राण में, चांद और चांदनी में मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग
रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
(5)
प्रश्न -3 निम्लिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिये -
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु
चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समान ।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
जी, तुम
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ENG 17:224
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