पार्षद सीमा अधिनियम क्या है?
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एक कंपनी की स्थापना का पहला कदम पार्षद सीमा नियम को तैयार करना है वास्तव में पार्षद सीमा नियम कंपनी का एक मौलिक दस्तावेज है कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 2(28) में बताया गया है कि ऐसा कोई दस्तावेज जो वर्तमान कंपनी अधिनियम में पूर्व की कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप बनाया या संशोधित किया गया है वह कंपनी का पार्षद सीमा नियम कहलाता है।
कंपनी का मौलिक दस्तावेज
पार्षद पार्षद सीमा नियम किसी भी प्रस्तावित कंपनी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज माना गया है।इसमें वे आधारभूत शर्ते दी जाती हैं जिनके आधार पर कंपनी का समामेलन होता है या कंपनी का चार्टर होता है। और इसमें कंपनी के अस्तित्व के कारण दिए होते हैं या कंपनी के क्रियाकलाप का क्षेत्र भी निश्चित करता है या कंपनी और बाहरी व्यक्तियों के बीच पारस्परिक संबंध को नियमित करता है। या दस्तावेज अंश धारियों एवं व्यक्तियों को जो कंपनी के साथ जुड़े हैं उनको इस योग्य बनाता है जिसे भी जान सके कि इस कंपनी की क्या स्वीकृति दी है या कंपनी के ना केवल उद्देश्य को बताता है बल्कि उसके क्षेत्र को भी बताता है। इस प्रकार यह बताता है कि कंपनी के क्रियाकलाप कंपनी के अधिकार क्षेत्र के बाहर नहीं हो सकते।
परिभाषा
कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 228 के अनुसार, सीमा नियम से आशय एक कंपनी के ऐसे पार्षद सीमा नियम से है जो पिछलेेे किसी भी कंपनी अधिनियम के अंदरभी कंपनी अधिनियम के अंदर इस अधिनियम के अधीन मूल रूप से बनाया गया हो अथव हो भी कंपनी अधिनियम के अंदर इस अधिनियम के अधीन मूल रूप से बनाया गया हो अथवा समय समय पर परिवर्तित किया परिवर्तित या गया हो।
पार्षद सीमा नियम को बहुत सावधानी से तैयार किया जाना चाहिए। विशेष रूप से इसके उद्देश्यों को बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए। एक बार उद्देश्य निर्धारित होने पर उसे आसानी से बदला नहीं जा सकता। उत्तेजना ही बहुत संकरण और ना ही बहुत व्यापक होना चाहिए।
पार्षद सीमा नियम को आवश्यक पैराग्राफ में विभाजित होना चाहिए और प्रत्येक पैराग्राफ पर क्रमागत नंबर पर आना चाहिए यह मुद्रित होना चाहिए। इस पर सार्वजनिक कंपनी की दशा में कम से कम 7 तथा निजी कंपनी की दशा में कम से कम 2 सदस्यों का हस्ताक्षर होना चाहिए। सदस्यों के हस्ताक्षर करवा हस्ताक्षरित एवं प्रमाणित होने चाहिए।