प्रातःकाल की कविता
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कितना अद्भुत है,
वह असीम दृश्य।
जिसमें है सूर्य से प्रकाशित,
प्रकृति का अनुपम सौंदर्य।
निशा के अंधेरे को चीरती,
प्रातः की वह पहली किरण।
और निर्मल, शुद्ध बहते हुए,
प्रवात का आवरण।
कोयल की कूक और चिड़ियों,
की चहचहाट से गुंजायमान,
ये संगीतमय वातावरण।
हृदय के तारों को झंकृत करती,
कितनी मनोरम है ये प्रकृति,
और प्रातः का सौंदर्य।
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Zihan0:
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