Hindi, asked by Paramjeet9591, 2 months ago

प्रात काल का दृश्य (निबंध)
प्रात: काल का दृश्य_ _ _ _ _ _ मनोहरी _ _ _ _ _ शीतल हवा _ _ सुबह का समय_ _ _ _ _ आलस्य भाग_ _ _ _
पक्षी_ _ _ चहचहा_ _ _ बागो _ _ _ चारों_ _ _ हरियाली _ _ _ _ _ _ लीग सर_ _ _ _ दिन भर चुस्त _ __ _ _ __ _ वातावरण_ _ _ _ मन मोह_ _ _ _ अच्छा लगता

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Answered by ravuri167
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Answer:

भूमिका- ‘शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्’ के अनुसार शरीर जीवन के सभी व्यापारों-व्यवहारों का हेतू है। आध्यात्मिक चिंतन हो अथवा शरीरिक कार्य हो, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन सब का मूलाधार शरीर है। शक्ति सम्पन्न शरीर, दिव्य ललाट, विशाल-वक्ष स्थल, बलशाली भुजाएं भव्य एवं आकर्षक व्यक्तित्व के लक्षण हैं। शरीर की आरोग्यता और पुष्टता ही स्वस्थ मन और मस्तिष्क की आधारशिला है। मानव-जीवन सुख और शान्ति की कामना में निरत है। अत: भौतिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए नीरोगशरीर आवश्यक है। इस प्रकार प्रत्येक व्यवसायी श्रमिक हो अथवा पूंजीपति, विद्यार्थी हो अथवा अध्यापक, डाक्टर हो अथवा इंजीनियर, अपने-अपने कार्य को निपुणता से तभी कर सकते हैं जब निरोग शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क भी हो।

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