पुर ते निकसी रघुबीर मार धीर , मग में ण । इबलको भरि भाल कनी जल को पुर धि गए मधुराधा वै॥ फिरि झाति है चलनो अथ केशिक पोर्नकरी करो कित है?" तिय की लधि आतुरता फ्यि की औखयों अति चारु चली जल ज "जल को गए लक्न है लरिका परिखौ पिय छाँह घरीक है ठादे। पोछि पसेत बयारि करी, अरु पार्थ पखारिही भूभुरि डाये ॥
तुलसी रघुबीर प्रिया श्रम जानि कैे बैठि बिलंब ली कटक कादे।
जानकी नाह को नेह लख्यौ पुलको तनु, बारि बिलोचन बाद।।
प्रथम सवैया का भाव स्पष्ट कीजिए|
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