Hindi, asked by harshulnegi2187, 12 hours ago

पूरिता' पदस्य विपरीतार्थकं पदं अस्ति-

पतिता
रिक्ता
सलिला​

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Answered by nzptsix380
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Answer:

रिक्ता तिथि त्याज्य क्यों है? इससे बनने वाले दुष्प्रभावी योग नष्ट भी होते हैं?

केयूर त्रिपाठी, आई पी यूनिवर्सिटी, दिल्ली  

ज्योतिष विज्ञान के मुहूर्तशास्त्र में तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण इन पांचों के संयोग को पंचांग कहते हैं। तिथियों की पांच संज्ञा होती है- नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा।

इनमें चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी तिथि को रिक्ता तिथि की संज्ञा दी गयी है। इनके गुण-दोष भी इन्हीं के नामों के अनुसार घटित होते हैं। इनमें नन्दा तिथि किसी भी तरह के विलासिता एवं मनोरंजन से सम्बंधित कार्य; भद्रा स्वास्थ्य, शिक्षा-प्रतियोगिता में सफलता, व्यवसाय की शुरुआत; जयातिथि प्रतियोगिता व मुकदमेबाजी; रिक्ता तिथि आपरेशन, दुश्मनों के खात्मे व कर्ज से छुटकारा दिलाने और पूर्णा तिथि किए गए सभी संकल्पों एवं कार्यों को पूर्ण करने के लिए शुभ फलदायी होती है।

इन पांचों में रिक्ता का विचार सर्वाधिक किया जाता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला जातक दूसरों के लिए समर्पित होता है। रिक्ता तिथियों में क्रमश: चतुर्थी के स्वामी गणेश, नवमी की शक्ति और चतुर्दशी के स्वामी शिव हैं। फलित ज्योतिषग्रंथ 'मानसागरी' के अनुसार- 'रिक्ता तिथौ वितर्कज्ञ: प्रमादी गुरु निन्दक:। शस्त्रज्ञो मदहन्ता कामुकश्च नरो भवेत्।।' अर्थात् इस तिथि में जन्म लेने वाला जातक हर एक कार्य में अनुमान करने वाला, गुरुओं का निंदक, शास्त्रों को जानने  वाला, दूसरे के अहंकार का नाश करने वाला एवं अत्यधिक कामी होता है।

कार्य आरम्भ अथवा किसी भी मुहूर्त का विचार करते समय रिक्ता तिथि का त्याग किया जाता है। इसमें आरम्भ किए गए कार्य निष्फल होते हैं, किन्तु विशेष ग्रह-नक्षत्र का संयोग होने पर इसमें भी शुभफल देने की शक्ति आ जाती है। जैसे कि जिस दिन यह तिथि पड़ रही हो, उस दिन शनिवार हो तो 'शनि रिक्ता समायोगे सिद्धयोग: वर्तते' अर्थात् इससे बनने वाले योग सभी दुष्प्रभावों को नष्ट करके सिद्धि प्रदान करते हैं। इसी प्रकार रिक्ता तिथि को यदि गुरूवार हो तो यह संयोग बेहद कष्टकारी योग होता है। इसके अंतर्गत किए अधिकतर कार्य-व्यापार में हानि तो होती ही है।

चैत्रमास में दोनों  पक्ष की रिक्ता तिथि नवमी, ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी, पौष मास में दोनो पक्षों की चतुर्थी, फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि शून्य तिथियां होती हैं। इन तिथियों में शुभ काम नहीं करना चाहिए। यदि किसी भी तरह का शुभ कार्य आरम्भ कर रहे हों तो रिक्ता तिथि का और इससे बनने वाले योगों का विचार करना अति आवश्यक है।

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