पारितंत्र से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए ।
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1. पारिस्थितिक-तंत्र का अर्थ (Meaning of Ecosystem):
संपूर्ण पृथ्वी अर्थात् स्थल, जल एवं वायु मण्डल और इस पर निवास करने वाले जीव एक विशिष्ट चक्र अथवा प्रणाली या तंत्र में परिचालित होते रहते हैं और प्रकृति या पर्यावरण के साथ अपूर्व सामंजस्य स्थापित करके न केवल अपने को अस्तित्व में रखते हैं अपितु पर्यावरण को भी स्वचालित करते हैं ।
इस प्रकार रचना एवं कार्य की दृष्टि से जीव समुदाय एवं वातावरण एक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं, इसी को ‘इकोसिस्टम’ अथवा पारिस्थितिक-तंत्र के नाम से संबोधित किया जाता है । प्रकृति स्वयं एक विस्तृत एवं विशाल पारिस्थितिक-तंत्र है, जिसे ‘जीव एण्डल’ के नाम से पुकारा जाता है ।
संपूर्ण जीव समुदाय एवं पर्यावरण के इस अंतर्संबंध को ‘इकोसिस्टम’ का नाम सर्वप्रथम ए.जी. टेन्सले ने 1935 में दिया । उन्होंने इसे परिभाषित करते हुए लिखा- पारिस्थितिक-तंत्र वह तंत्र है जिसमें पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक कारक अंतर्संबंधित होते हैं ।
टेन्सले से पूर्व एवं उनके समकालीन अनेक विद्वानों ने इसी प्रकार जीव-पर्यावरण संबंधों को विविध नामों से संबोधित किया जैसे 1877 में कार्ल मोबिअस ने ‘Bicoenosis’, एस.ए. फोरबेस ने 1887 में ‘Microcosm’, वी.वी. डोकूचेहव ने 1846-1903 में ‘Geobiocoenosis’, 1930 में फ्रेडरिच ने ‘Holocoen’, थियनेमान ने 1939 में ‘Bio system’ आदि ।
किंतु इनमें सर्व स्वीकार शब्द ‘Ecosystem’ ही है । यह दो शब्दों से बना है अर्थात् ‘Eco’ जिसका अर्थ है पर्यावरण जो ग्रीक शब्द ‘Oikos’ का पर्याय है जिसका अर्थ है ‘एक घर’ और दूसरा ‘System’ जिसका अर्थ है व्यवस्था या अंतर्संबंध अथवा अंतर्निर्भरता से उत्पन्न एक व्यवस्था जो छोटी-बड़ी इकाइयों में विभक्त विभिन्न स्थानों में विभिन्न स्वरूप लिए विकसित पाई जाती है । इस तंत्र में जीव मण्डल में चलने वाली सभी प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं और मानव इसके एक घटक के रूप में कभी उसमें परिवर्तक या बाधक के रूप में कार्य करता
पारिस्थितिक-तंत्र को स्पष्ट करते हुए मांकहॉउस और स्माल ने लिखा है- पादप एवं जीव जंतुओं या जैविक समुदाय का प्राकृतिक पर्यावरण अथवा आवास के दृष्टिकोण से अध्ययन करना । जैविक समुदाय में वनस्पति एवं जीव जंतुओं के साथ ही मानव भी सम्मिलित किया जाता है । इसी प्रकार के विचार पीटर हेगेट ने पारिस्थितिक-तंत्र को परिभाषित करते हुए लिखा है- ”पारिस्थितिक-तंत्र वह पारिस्थितिक व्यवस्था है जिसमें पादप एवं जीव-जंतु अपने पर्यावरण से पोषक चेन द्वारा संयुक्त रहते हैं ।”
तात्पर्य यह है कि पर्यावरण पारिस्थितिक-तंत्र को नियंत्रित करता है और प्रत्येक व्यवस्था में विशिष्ट वनस्पति एवं जीव-प्रजातियों का विकास होता है । पर्यावरण वनस्पति एवं जीवों के अस्तित्व का आधार होता है और इनका अस्तित्व उस व्यवस्था पर निर्भर करता है जो इन्हें पोषण प्रदान करती है ।
स्थ्रेलर ने पारिस्थितिक-तंत्र की व्याख्या करते हुए लिखा है- ”पारिस्थितिक-तंत्र उन समस्त घटकों का समूह है जो जीवों के एक समूह की क्रिया-प्रतिक्रिया में योग देते हैं ।” वे आगे लिखते हैं- ”भूगोलवेत्ताओं के लिये पारिस्थितिक-तंत्र उन भौतिक दशाओं के संगठन का भाग है जो जीवन सतह (स्तर) का निर्माण करते हैं ।”
2. पारिस्थितिक-तंत्र के घटक (Components of Ecosystem):
प्रत्येक पारिस्थितिक-तंत्र की संरचना दो प्रकार के घटकों से होती है:
(अ) जैविक या जीवीय घटक,
(ब) अजैविक
(अ) जैविक या जीवीय घटक:
जैविक या जीवीय घटकों को दो भागों में विभक्त किया जाता है:
(i) स्वपोषित घटक:
वे सभी जीव इसे बनाते हैं जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों को प्राप्त कर जटिल पदार्थों का संश्लेषण कर लेते हैं अर्थात् अपने पोषण के लिये स्वयं भोजन का निर्माण अकार्बनिक पदार्थों से करते हैं । ये सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पदार्थों, जल और कार्बन-डाई-ऑक्साइड को प्रयोग में लाकर भोजन बनाते हैं जिनका उदाहरण हरे पौधे हैं । ये घटक उत्पादक कहलाते हैं ।
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(ii) परपोषित अंश:
ये स्वपोषित अंश द्वारा पैदा किया हुआ भोजन दूसरे जीव द्वारा प्रयोग में लिया जाता है । ये जीव उपभोक्ता या अपघटनकर्त्ता कहलाते हैं । कार्यात्मक दृष्टिकोण से जीवीय घटकों को क्रमश: उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक श्रेणियों में विभक्त किया जाता है ।
a. उत्पादक:
इसमें जो स्वयं अपना भोजन बनाते हैं, जैसे हरे पौधे वे प्राथमिक उत्पादक होते हैं और इन पर निर्भर जीव-जंतु एवं मनुष्य गौण उत्पादक होते हैं क्योंकि व पौधों से भोजन लेकर उनसे प्रोटीन, वसा आदि का निर्माण करते हैं ।
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b. उपभोक्ता:
ये तीन प्रकार के होते हैं:
(i) प्राथमिक (Primary)- जो पेड़ पौधों की हरी पत्तियाँ भोजन के रूप में काम लेते हैं, जैसे- गाय, बकरी, मनुष्य आदि । इन्हें शाकाहारी कहते हैं ।
(ii) गौण या द्वितीय (Secondary)- जो शाकाहारी जंतुओं या प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं, जैसे- शेर, चीता, मेंढक, मनुष्य आदि । इन्हें मांसाहारी कहते हैं ।
(iii) तृतीय (Tertiary)- इस श्रेणी में वे आते हैं जो मांसाहारी को खा जाते हैं, जैसे- साँप मेढ़क को खा जाता है, मोर साँप को खा जाता है ।
c. अपघटक:
इसमें मुख्य रूप से जीवाणु तथा कवकों का समावेश होता है जो मरे हुए उपभोक्ताओं को साधारण भौतिक तत्वों में विघटित कर देते हैं तथा ये फिर से वायु मण्डल में मिल जाते हैं ।
(ब) अजैविक या अजीवीय घटक:
इनको तीन भागों में बाँटा जाता है:
(i) जलवायु तत्व- जैसे सूर्य का प्रकाश, तापक्रम, वर्षा आदि ।
(ii) कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter)- जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि ।
(iii) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Matter)- जैसे कैल्शियम, कार्बन, हाइड्रोजन, सल्फर, नाइट्रोजन आदि ।