प्रो .दीपेश की बुद्धि बडी तेज हैं। ( इस वाक्य को शुद्ध रूप में लिखिए । )
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पद बंदि सहित अनुरागा ।
राम मुनिन्ह सन आयसु माँगा ।।
सहजहिं चले सकल जग स्वामी ।
मत्त मंजु बर कुंजर गामी ।।
चलत राम सब पुर नर नारी ।
पुलक पूरि तन भए सुखारी ।।
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे ।
जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ।।
तौ सिवधनु मृनाल की नाईं।
गुरु पद बंदि सहित अनुरागा ।
राम मुनिन्ह सन आयसु माँगा ।।
झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुगधर वे
पुर तें निकसी रघुबार-बधू, धरि धीर दए, मग में पदे
फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहों कित है?"
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल ।
'जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौ, पिय! छाँह घरीक है ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिही भूभुरि-डाढ़े।
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