प्रादेशिक प्रत्यय अलग करके लिखिए
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वि० [सं० प्रदेश+ठक्—इक] [भाव० प्रादेशिकता] १. प्रदेश-संबंधी। किसी एक प्रदेश का। जैसे—प्रादेशिक परिषद्, प्रादेशिक भाषा। २. प्रदेश के भीतरी कामों या भागों से संबंध रखने वाला अथवा उनमें रहने या होनेवाला। (टेरिटोरियल) जैसे—प्रादेशिक सेना। ३. किसी प्रसंग या प्रस्तुत विषय के अनुसार या उससे संबद्ध। प्रसंग-गत। पुं० १. सरदार। सामंत
प्रादेशिक : वि० [सं० प्रदेश+ठक्—इक] [भाव० प्रादेशिकता]
प्रत्यय प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना है- प्रति+अय। 'प्रति' का अर्थ है 'साथ, पर बाद में'; जबकि 'अय' का अर्थ है 'चलना'। इसलिए 'प्रत्यय' का अर्थ है, 'शब्दों के साथ, लेकिन जो बाद में आता है या बाद में आता है, इसलिए इसका प्रयोग शब्द के अंत में किया जाता है। प्रत्यय वे अपरिवर्तनशील शब्दांश हैं जो किसी सार्थक मूल शब्द के बाद जोड़े जाते हैं, जो शब्द के अंत में जुड़कर उसके अर्थ या अर्थ को बदल देते हैं, अर्थात् शब्द में एक नई विशेषता पैदा कर देते हैं या अर्थ बदल देते हैं।
पसंद करना-
सफलता + टा = सफलता
अच्छा + ई = अच्छाई
यहाँ 'ता' और 'ऐ' शब्दांश प्रत्यय हैं, जो 'सफलता' और 'अच्छा' धातु के बाद जुड़कर 'सफलता' और 'अच्छाई' बनते हैं। हिंदी भाषा के प्रत्यय को चार भागों में बांटा गया है। जो निम्नलिखित है
- संस्कृत प्रत्यय
- हिन्दी प्रत्यय
- विदेशी उपसर्ग
- ई प्रत्यय
जो शब्दांश शब्दों के अंत में जुड़कर अर्थ में परिवर्तन लाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
दूसरे शब्दों में शब्दों के अंत में जो शब्दांश जुड़कर शब्द बनते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना है- प्रति+अय। प्रति का अर्थ है 'साथ में, लेकिन बाद में' और अया का अर्थ है 'चलने वाला'। अत: प्रत्यय का अर्थ है, जो साथ में लेकिन बाद में चले। प्रत्यय उपसर्गों की भाँति विभक्ति-संबंधी शब्दांश होते हैं, जो शब्दों के बाद जुड़ते हैं।
प्रत्यय का अपना कोई अर्थ नहीं होता और न ही उनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है। प्रत्यय अपरिवर्तनीय शब्दांश होते हैं जो शब्दों के अंत में जोड़े जाते हैं।
पसंद करना -
- समाज + इक = सामाजिक
- सुगंध + यह = सुगंधित
- भूलना + अहंकार = भुलक्कड़
- मीठा + स्वाद = मिठास
- अच्छा + मैं = अच्छा
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