India Languages, asked by shreyasnair002, 7 hours ago

प्र.५ ६) द्वन्दः नमन्तत्पुटपः समासः च पृथक् रुत । (८ तः ६)
(अनल्यम्, मत्स्यमण्डको, पत्रपुष्पाणि, अयोग्यम्, तिलगूडम्, दुग्धशर्करम्, अनृतम्, पुष्पलताः
इतरेतहन्दः समासः । समाहारद्वन्द्वः समासः ।
नञ्तत्पुरुषः समासः

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Answered by thegeniusgirlpriya
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Answer:

तृतीयान्‍तं तृतीयान्‍तार्थकृतगुणवचनेनार्थेन च सह वा प्राग्‍वत् । शङ्कुलया खण्‍डः । धान्‍येनार्थो धान्‍यार्थः । तत्‍कृतेति किम् ? अक्ष्णा काणः ।।

तृतीयान्त समर्थ सुबन्त शब्द का उसके द्वारा किये गये गुण के वाचक शब्दों के सुबन्त तथा अर्थ शब्द के साथ समास होता है तथा वह तत्पुरूष समास कहलाता है।

समास होने पर अव्ययीभाव समास की तरह तत्पुरुष में भी प्रातिपदिकसंज्ञा, सुप् का लुक्, उपसर्जनसंज्ञा, उपसर्जन का पूर्व में प्रयोग, सु आदि विभक्ति के कार्य आदि होंगें। इस सूत्र में तृतीया यह पद प्रथमान्त है। तृतीया के द्वारा निर्दिष्ट पद की उपसर्जनसंज्ञा होगी। इस सूत्र से दो स्थितियों में समास होता है 1. गुण वाचक सुबन्त तथा 2. अर्थ शब्द के साथ।

शङ्कुलाखण्डः। शङ्कुलया खण्डः लौकिक विग्रह  तथा शङ्कुला टा + खण्ड सु इस अलौकिक विग्रह में तृतीया तत्कृतार्थेन गुणवचनेन से समास हुआ। यहाँ पर तृतीयान्तपद है शङ्कुला + टा । तृतीयार्थ शङ्कुला (सरोता), के द्वारा किया गया गुण वाचक शब्द है खण्ड सु । यह खण्ड सु समर्थ सुबन्त है। समास के बाद शङ्कुला टा + खण्ड सु की प्रातिपदिकसंज्ञा,सुपो धातुप्रातिपदिकयोः से टा तथा सु इन दोनों सुप् प्रत्ययों का लोप होकर शङ्कुला + खण्ड बना। प्रथमानिर्दिष्ट शङ्कुला की उपसर्जनसंज्ञा तथा पूर्वप्रयोग कर शङ्कुलाखण्ड बना। सु विभक्ति, रूत्व तथा विसर्ग करके शङ्कुलाखण्डः सिद्ध हुआ। शङ्कुलाखण्डः तत्कृतार्थेन गुणवचनेन का उदाहरण है।

धान्यार्थः । धान्येन अर्थः लौकिक विग्रह तथा धान्य टा + अर्थ सु अलौकिक विग्रह में तृतीया तत्कृतार्थेन गुणवचनेन से समास हुआ। यहाँ पर तृतीयान्त पद धान्य + टा का समर्थ सुबन्त शब्द अर्थ + सु। समास के बाद धान्य टा + अर्थ सु की प्रातिपदिकसंज्ञा हुई तथा सुपो धातुप्रातिपदिकयोः से टा तथा सु इन दो सुप्-प्रत्ययों का लुक् हुआ- धान्य + अर्थ बना। प्रथमानिर्दिष्ट धान्य की उपसर्जनसंज्ञा तथा पूर्वप्रयोग  कर सवर्णदीर्घ करके धान्यार्थ बना है। सु विभक्ति तथा उसको रूत्व तथा विसर्ग करके धान्यार्थः सिद्ध हुआ। 

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