प्राथमिक आगतें क्या हैं?
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GYAN VIGYAN VATIKA
ज्ञान-विज्ञान वाटिका
प्राथमिक, द्वितीयक तथा संदर्भ समूह
समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।
-प्राथमिक समूह
-द्वितीयक समूह
प्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।
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प्राथमिक समूह की अवधारणा का जिक्र सर्वप्रथम सीएच कूली ने अपनी पुस्तक सोशल ऑर्गनाइजेशन (१८09) में किया।
उनके अनुसार- प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से हैं, जिनमें सदस्यों के बीच आमने सामने घनिष्ठ संबंध होते हैं। साथ ही पारस्परिक सहयोग इसकी अनिवार्य विशिष्टता होती है। एेसे समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक होते हैं, विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी यानी प्राथमिक योगदान देते हैं।
ंइस अवधारणाा को प्रस्तुत करने के पीछे कूली का मुख्य उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि मानव व्यक्तित्व के विकास में कुछ एेसे समूह होते हैं, जिनकी महत्वपूर्ण या प्राथमिक भूमिका होती है।
कूली की परिभाषा से स्पष्ट है कि प्राथमिक समूह में शारीरिक नजदीकी, घनिष्ठ संबंध एवं पारस्परिक संबंध का होना आवश्यक है। कूली ने परिवार, पड़ोस और क्रीड़ा समूह को एक अच्छा उदाहरण माना है।
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इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्राथमिक समूह की सबसे बड़ी विशेषताआंें में वयं भावना (वी फीलिंग) बहुत महत्वपूर्ण है। प्राथमिक समूह अपने आप में बहुत ही मजबूती से बंधा हुआ समूह है, जिसमें आमने-सामने के संबंधों के अलावा एकता की भावना प्रबल रूप से पायी जाती है। सदस्यों में एक सामान्य सामाजिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता पाई जाती है।
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कूली ने अपनी परिभाषा में जिस आमने सामने का संबंध का उल्लेख किया है वह समाजशास्त्रियों के बीच काफी विवाद का विषय बन गया। के डेविस ने कहा कि आमने-सामने का संबंध प्राथमिक समूह का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि कभी कभी आमने सामने का संबंध रखते हुए भी दो व्यक्तियों के बीच घनिष्ठ संबंध नहीं पनपते, इसके उलट लंबे समय तक आमने-सामने संबंध न होते हुए भी घनिष्ठ संबंध पनप सकता है।
मसलन लंबे समय तक एक दूसरे के आमने सामने होते हुए भी ऑफिस के कर्मचारियों में जरूरी नहीं कि घनिष्ठता पनप पाए, जबकि पिता-पुत्र में हजारों किलोमीटर की दूरी और लंबे समय से दूर रहने के बावजूद घनिष्ठता पनपती है।
ई फैरिस ने भी कहा है कि आमने सामने के संबंध के अभाव में भी सामाजिक निकटता पायी जा सकती है। नातेदारी समूह इस बात का एक अच्छा उदाहरण है। जहां लोग एक दूसरे के आमने सामने नहीं होते हैं, इसके बावजूद उनके बीच आपसी निकटता की भावना पायी जाती है।
दूसरी ओर के बीयरस्टेट ने कूली के विचारों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन प्रदान करते हुए यह कहा कि, कूली के द्वारा उल्लिखित आमने-सामने शब्द को शाब्दिक रूप में लेना ठीक नहीं है। बल्कि प्रतीकात्मक रूप में लेना है। इस शब्द के द्वारा कूली मात्र संबंधों की घनिष्ठता का बोध करना चाहते हैं।
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प्राथमिक समूह की विशेषताएं
लघु आकार
आमने सामने का संबंध
तुलनात्मक विकास
लक्ष्यों की समानता
स्वत: विकसित समूह
व्यक्गित एवं घनिष्ठ संबंधों की प्रधानता
अनौपचारिक संबंध
सर्वव्यापकता
समाजीकरण का एक अभिकरण
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द्वितीयक समूह
कूली द्वारा प्रतिपादित प्राथमिक समूह जब काफी लोकप्रिय हो गया तो कुछ विद्वानों ने इसके प्रतिकूल सामाजिक व्यवस्थ की भी बात कही, जो द्वितीयक समूह के रूप में प्रचलित हुआ।
इस तरह के समूह में आमने-सामने का संबंध काफी कमजोर होता है।, समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठता की कमी होती है। जैसे दुकानदार-ग्राहक का संंबंध, डॉक्टर-रोगी का संबंध, नेता और अनुयायी का संबंध, ऑफिसर एवं किरानी का संबध। एेसे संबंधों को लोग योजनाबद्ध रूप में या जानबूझकर निर्मित करते हैं।
द्वितीयक समूह के संबंधों में स्थायित्व की कमी एवं संबंधों का छिछलेपन का होना स्वाभाविक है। क्योंकि साधारणतया इसका आकार प्राथमिक समूह की तुलना में काफी बड़ा होता है। सदस्यों के बीच हमेशा आमने सामने का संबंध नहीं हो पाता है। लोग एेसे समूहों का निर्माण स्वार्थवश करते हैं। अत: सदस्यों के बीच में स्वाभाविक रूप से संवेगात्मक-भावनात्मक लगाव की कमी होती है।
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द्वितीयक समूह की परिभाषाएं
-स्टीफन कोल के अनुसार: द्वितीयक समूह वे होते हैं, जो अपेक्षाकृत काफी बड़े होते हैं और उनमें पाए जोन वाले संबंध काफी अवैयक्तिक होते हैं।
कोल के विचार से स्पष्ट है कि द्वितीयक समूह के सदस्यों के बीच संबंधों में आत्मीयता की कमी होती है। प्राथमिक समूह की तुलना में इसके सदस्यों के बीच अंत:क्रियाएं भी काफी कम मात्रा में पायी जाती हैं। एेसा इसलिए होता है क्योंकि आकार में बड़ा होने के कारण इसके सदस्यों में दूरी बहुत होती है।
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एंथोनी गिडेंस की परिभाषा
यह व्यक्तियों का एक एेसा समूह है जिसके अंतर्गत लोग मिलते तो हैं, लेकिन उनके संबंध मुख्य रूप से अवैयक्तिक होते हैं। व्यक्तियों के बीच संबंध गाढ़े नहीं होते । लोग सामान्यतया तभी एक दूसरे के निक ट आते हैं, जब उनके सामने कोई निश्चित व्यावहारिक उद्देश्य होता है।
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द्वितीयक समूह की विशेषताएं्र
-बड़ा आकार
-अप्रत्यक्ष एवं अवैयक्तिक संबंध
-एेच्छिक सदस्यता
-स्थायित्व में कमी
-सीमित स्वार्थों की पूर्ति
-योजनाबद्ध व्यवस्था
-अल्पकालिक सदस्यता
-औपचारिक संगठन
-आई या दे फीलिंग