Biology, asked by raji8986, 11 months ago

प्राथमिक एवं द्वितीयक ऊतक किसे कहते हैं

Answers

Answered by Anonymous
5

Answer:

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूह

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूहप्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूहप्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।.....................................

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूहप्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।.....................................प्राथमिक समूह की अवधारणा का जिक्र सर्वप्रथम सीएच कूली ने अपनी पुस्तक सोशल ऑर्गनाइजेशन (१८09) में किया।

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूहप्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।.....................................प्राथमिक समूह की अवधारणा का जिक्र सर्वप्रथम सीएच कूली ने अपनी पुस्तक सोशल ऑर्गनाइजेशन (१८09) में किया। उनके अनुसार- प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से हैं, जिनमें सदस्यों के बीच आमने सामने घनिष्ठ संबंध होते हैं। साथ ही पारस्परिक सहयोग इसकी अनिवार्य विशिष्टता होती है। एेसे समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक होते हैं, विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी यानी प्राथमिक योगदान देते हैं।

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूहप्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।.....................................प्राथमिक समूह की अवधारणा का जिक्र सर्वप्रथम सीएच कूली ने अपनी पुस्तक सोशल ऑर्गनाइजेशन (१८09) में किया। उनके अनुसार- प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से हैं, जिनमें सदस्यों के बीच आमने सामने घनिष्ठ संबंध होते हैं। साथ ही पारस्परिक सहयोग इसकी अनिवार्य विशिष्टता होती है। एेसे समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक होते हैं, विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी यानी प्राथमिक योगदान देते हैं।ंइस अवधारणाा को प्रस्तुत करने के पीछे कूली का मुख्य उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि मानव व्यक्तित्व के विकास में कुछ एेसे समूह होते हैं, जिनकी महत्वपूर्ण या प्राथमिक भूमिका होती है।

समूह के आकार के आधार पर समूह को दो भागों बांटा जा सकता है।-प्राथमिक समूह-द्वितीयक समूहप्राथमिक और द्वितीयक समूह के बीच अंतर सिर्फ आकार भर का नहीं है, बल्कि समूह के अंतर्गत सदस्यों के संबंध के स्वरूप का भी है।.....................................प्राथमिक समूह की अवधारणा का जिक्र सर्वप्रथम सीएच कूली ने अपनी पुस्तक सोशल ऑर्गनाइजेशन (१८09) में किया। उनके अनुसार- प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से हैं, जिनमें सदस्यों के बीच आमने सामने घनिष्ठ संबंध होते हैं। साथ ही पारस्परिक सहयोग इसकी अनिवार्य विशिष्टता होती है। एेसे समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक होते हैं, विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी यानी प्राथमिक योगदान देते हैं।ंइस अवधारणाा को प्रस्तुत करने के पीछे कूली का मुख्य उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि मानव व्यक्तित्व के विकास में कुछ एेसे समूह होते हैं, जिनकी महत्वपूर्ण या प्राथमिक भूमिका होती है। कूली की परिभाषा से स्पष्ट है कि प्राथमिक समूह में शारीरिक नजदीकी, घनिष्ठ संबंध एवं पारस्परिक संबंध का होना आवश्यक है। कूली ने परिवार, पड़ोस और क्रीड़ा समूह को एक अच्छा उदाहरण माना है।

Similar questions