प्राधिकरण का एक
4. राजस्थान भारत में मेवाड के शासक परिवार,
उदाहरण है।
(क) नौकरशाही
(ख) करिश्माई
(ग) पारंपरिक
(घ) कोई नहीं
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Answer:
पिताजी - लेकिन फिर परिवार का क्या होगा. तुम अकेले कैसे रहोगे?
पिछले कुछ सालों में इस तरह का संवाद शहरी घरों में आम हो गया है, जहाँ मामूली सुविधा के लिए, थोड़ी असुविधा से बचने के लिए लोग परिवार से अलग होने का फ़ैसला कर लेते हैं.
भारत में जहां एक परिवार की परिकल्पना एक साथ रहने पर होती थी और उसे हरे-भरे या खुशहाल परिवार की संज्ञा दी जाती थी. वहीं 21वीं शताब्दी में कहीं न कहीं इस भरे-पूरे घर का ढांचा सिमटता नज़र आता है.
हालांकि भारतीय समाज में पारिवारिक रिश्तों की डोर हमेशा ही बेहद मज़बूत मानी जाती रही है. ख़ानदानी रिश्ते, सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रूप से लोगों के अंदर सुरक्षा का मज़बूत भाव पैदा करते रहे हैं. लोग बड़े ग़ुरूर से कहते हैं कि मैं फ़लां ख़ानदान से ताल्लुक़ रखता/रखती हूं. वहीं समाज में लोगों का सामाजिक दर्ज़ा इस बात से तय होता था कि वो किस परिवार से आते हैं.भारत के अलग-अलग हिस्सों में परिवार की बनावट और इसके आकार में हमें बहुत विविधताएं देखने को मिलती हैं. किसी भी परिवार के वर्गीकरण की सबसे महत्वपूर्ण कसौटी होती है, शादी का तरीक़ा और परिवार में लोगों के अधिकार.
भारत की आज़ादी के बाद से अब तक अलग-अलग राज्यों में परिवार की सरंचना में विविधताएं दिखती हैं.
हिमालय की तराई के जौनसर बावर इलाक़े में यानी देहरादून से लेकर लद्दाख तक हमें तरह-तरह की पारिवारिक संरचनाएं दिखती हैं. इस इलाक़े में एक स्त्री और एक पुरुष के वैवाहिक संबंध (मोनोगैमी) वाले परिवार, बहुपत्नी प्रथा (पॉलीगेमी) और बहुपति प्रथा (पोलिएंड्री) आम थे. हालांकि अब इनकी तादाद कम हो रही है और अब यहां समाज के ज़्यादातर तबक़ों में मोनोगैमी ही आम है.