प्र. १. उपर्युक्त अवतरण के आधा रवीर लिखे प्रश्नों के उत्तर दें?
'प्राण जाएं पर वचन न जाए यह हमारे जीवन का मूलमंत्र है।
जो तीर तरकश से निकलकर कमान से छूट गया, उसे बीच में
लौटाया नहीं जा सकता? मेरी प्रतिज्ञा कठिनाई से पूरी होगी, यह
मैं जानता हूँ और इस बात की हाल में पुष्टि भी हो चुकी है कि
हाड़ा जाति वीरता में हम लोगों से किसी प्रकार हीन नहीं है।"(१०)
क) उपर्युक्त कथन के वक्ता और श्रोता का संक्षिप्त परिचय दें। (२)
ख) वक्ता ने क्या प्रतिज्ञा ली थी ? कारण सहित लिखिए। (२)
ग) हाड़ा वंश के राजा कौन थे ? हाड़ा लोगों की क्या विशेषताएँ थीं।?
उन पर प्रकाश डालिए।
(३)
'प्राण जाएं पर वचन न जाए' इस कहावत का क्या अर्थ है?
एकांकी के संदर्भ में समझाइए।
(३)
प्र.२. 'पर्यावरण है तो मानव है। विषय को आधार बनाकर पर्यावरण
सुरक्षा को लेकर आप क्या क्या प्रयास कर रहे है ? विस्तार से
लिखिए।
(१५)
प्र.३. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार दें।
(०५)
निम्नलिखित शब्दों के दो दो पर्यायवाची लिखें।
(१)
आनन्द,
राक्षस
निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखें।
सामिष
कृत्रिम
घ)
क)
(
१
)
ख)
-
Answers
(क) उपर्युक्त कथन के वक्ता और श्रोता का संक्षिप्त परिचय दें।
► उपरोक्त कथन के वक्ता मेवाड़ के महाराजा लाखा है, इसके श्रोता उनके सेनापति अभयसिंह है। महाराणा लाखा को नीमरा के मैदान में संख्या में बेहद कम हाड़ाओं के द्वारा बूंदी के राव हेमू से हार कर मैदान छोड़कर भागना पड़ा था, जिसके कारण उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची थी।
(ख) वक्ता ने क्या प्रतिज्ञा ली थी ? कारण सहित लिखिए।
► वक्ता महाराज लाखा ने प्रतिज्ञा ली कि वे जब तक बूंदी के दुर्ग में सेना सहित प्रवेश नहीं करेंगे, अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।
(ग) हाड़ा वंश के राजा कौन थे ? हाड़ा लोगों की क्या विशेषताएँ थीं।? उन पर प्रकाश डालिए।
► हाड़ा वंश के राजा हेमू थे। हाड़ा वंश के लोग अति वीर होते थे और वे युद्ध कला महारत हासिल रखते थे और युद्ध में किसी से भी नहीं डरते थे। इस कारण बेहद संख्या में कम होने के बावजूद उन्होंने महाराजा लाखा को पराजित कर दिया था। हाड़ा के लोग अपनी मातृभूमि का अपमान जरा भी सहन नहीं कर पाते थे और अपनी मातृभूमि के सम्मान के लिए अपनी जान देने से पीछे नहीं सकते थे। बूंदी के हाड़ा लोग सुख-दुख में मेवाड़ के साथ रहते थे।
(घ) 'प्राण जाएं पर वचन न जाए' इस कहावत का क्या अर्थ है? एकांकी के संदर्भ में समझाइए।
►‘प्राण जाए पर वचन ना जाए’ इस कहावत का अर्थ है कि एक बार जो वचन दे दिया यानि एक बार जो बात कह दी, जो प्रतिज्ञा कर ली उसको पूरा करने के लिए चाहे प्राण क्यों ना चले जाएं, लेकिन अपने वचन का मान रखना है। जो बात एक बार कह दी उस बात का मान रखना, उसको सच करना परम कर्तव्य है। महाराणा मेवाड़ के राजा महाराणा लाखा ने ‘मातृभूमि का मान’ एकाँकी में में इसी संदर्भ में प्रतिज्ञा ली थी। जब वे राजा हेमू से पराजित हो गये थे तो उन्होने प्रतिज्ञा ली कि बूंदी के दुर्ग में तब तक अपनी सेना के साथ प्रवेश नहीं करेंगे जब तक अन्न-जल ग्रहण नही करेंगे।
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