पूर्व में लौह के निष्कर्षण में स्थानीय तरीके क्या रहे हैं और अभी क्या है
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Explanation:
हेमेटाइट से लोहे का निष्कर्षण
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1. अयस्क का उपचार : व्यस्क के बड़े-बड़े टुण्ड़ों को छोटे-छोटे टूकड़ों में तोड़ा जाता है। तत्पश्चात् जल के साथ धोकर क्ले, रेत तथा अन्य अतिरिक्त अशुद्धियों को हटाया जाता है। इस प्रकार अयस्क वात्याभट्टी में उपचार के लिए तैयार हो जाता हैं। 2. वात्याभट्टी में प्रगलन : सान्द्रित अयस्क को कॉक तथा चूने पत्थर के साथ मिश्रित किया जाता है। मिश्रण, वात्याभट्टी के शीर्ष पर जमा हो जाता है । भट्टी में निम्न अभिक्रियायें होती हैं।
(i) आवेश को 873 K क्षेत्रा तक कम किया जाता है। जिससे आयरन ऑक्साइड़, कॉक के जलने से बनी कार्बन मोनोऑक्साइड़ गैस के बढ़ने के साथ-साथ
अपचयित होता जाता है।
इस प्रकार प्राप्त लोहा स्पॉन्ज लोहा कहलाता है (ii) 1273 K क्षेत्रा में सिलिका, धातुमल में परिवर्तित होती है।
CACO3 → Cao + CO2
CaO + SiO2 → CaSiO3
slag
(iii) 1573 K क्षेत्रा में स्पॉन्ज लोहा पिघलता है तथा कार्बन, फॉस्फोरस, सिलिका आदि घुलती हैं। धातुमल भी संगलित होता है। गलित पदार्थ भट्टी के आधार पर इकट्ठा हो जाता हैं। धातुमल इस पर तैरता रहता है। गलित लोहा को
आवश्यकतानुसार निकाल लिया जाता हैं। यह लोहा, ढलवा लोहा कहलाता हैं। चूने पत्थर का कार्य : चूने पत्थर, बिना बुझे चूने में विघटित होता है
CaCO3 Cao + CO2
बिना बुझा चूना, अशुद्धियों जैसे- रेत के साथ जुड़कर एक गलित धातुमल (कैल्शियम सिलिकेट) बनाता है।
Cao + SiO2 - CaSiO3
धातुमल, गलित लोहे की सतह पर तैरता है। इसे समान्तरालों पर छिद्र द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है। धातुमल के रूप में कैल्शियम सिलिकेट निर्माण के द्वारा केवल अवांछित सिलिका ही हटा कि नहीं जाती बल्कि लोहों को भी ऑक्सीकृत से बचाया जाता है।