Social Sciences, asked by Vaswata3714, 10 months ago

पूर्व युग के मनुष्य बन्जारे क्यों कहलाते थे।

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Answered by samarth817
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युग, हिंदु सभ्यता के अनुसार, एक निर्धारित संख्या के वर्षों की कालावधि है। ब्रम्हांड का काल चक्र चार युगों के बाद दोहराता है। हिन्दू ब्रह्माण्ड विज्ञान से हमे यह पता चलता है की हर ४.१-८.२ अरब सालों बाद ब्रम्हांड में जीवन एक बार निर्माण एवं नष्ट होता है। इस कालावधि को हम ब्रह्मा का एक पूरा दिन (रात और दिन मिलाकर) भी मानते है। ब्रह्मा का जीवनकाल ४० अरब से ३११० अरब वर्षों के बीच होता है।

काल के अंगविशेष के रूप में 'युग' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद से ही मिलता है (दश युगे, ऋग्0 1.158.6) इस युग शब्द का परिमाण अस्पष्ट है। ज्यौतिष-पुराणादि में युग के परिमाण एवं युगधर्म आदि की सुविशद चर्चा मिलती है।

वेदांग ज्योतिष में युग का वरण है (1,5 श्लोक)। यह युग पंचसंवत्सरात्मक है। कौटिल्य ने भी इस पंचवत्सरात्मक युग का उल्लेख किया है। महाभारत में भी यह युग स्मृत हुआ है। पर यह युग पारिभाषिक है, अर्थात् शास्त्रकारों ने शास्त्रीय व्यवहारसिद्धि के लिये इस युग की कल्पना की है। सतयुग त्रेता युग द्वारा पाक युग और कालयुग एक परिकल्पना है सतयुग की परिकल्पना में सभी इच्छा की पूर्ति तत्काल होती है त्रेतायुग में कुछ इच्छाओं को छोड़कर अत्याधिक इच्छा की पूर्ति होती है और द्वारापाक में आधे इच्छा की पूर्ति होती है कालयुग में कोई बहुत बहुत कम इच्छा की पूर्ति होती है परन्तु कालयुग की पूर्ण कल्पना होने पर सतयुग पुनः प्रारंभ होता है ।

जो वास्तविक विश्व है मात्र इसमें जीवनयापन करने के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है । परन्तु परिकल्पना की दुनिया में स्वयं की आत्मा व चेतना को प्राप्त करने के लिए अधर्म की शक्तियों से युध्द करना पड़ता है साथ ही इस विश्व में दुष्ट मनुष्यों के असत्य वचनों व छलकपट को भी समझना पड़ता है ।

परिकल्पना की दुनिया के मिथ्क इस वास्तविक विश्व के दुख दर्द से भी अत्याधिक दुखभरा है अत्याधिक उलझन है अत्याधिक व्याकुलता बैचैनी जब मनुष्य की मन परिकल्पना की दुनिया में प्रवेश करती है तब से अंतिम क्षण अर्थात पांच वर्षों तक सुख और चैन पूरी तरहा से जीवन से चला जाता है मात्र सदैव चिंतन मनन परिकल्पना ही रहता है ना जगने पर परिकल्पना खत्म होती है ना निंद्रा में मात्र दिन रात परिकल्पना आती ही रहती है । कहा जाऐ तो भूख गरीबी बीमरी धोखा अपमान मृत्यु से भी भयावह कुछ है तो परिकल्पना की दुनिया की कल्पना अगर वास्तविक दुनिया में सतयुग त्रेता युग व द्वारापाक युग व कालयुग होता तो विश्व का हर मनुष्य व्याकुलता बैचैनी के कारण आत्महत्या कर लेता ।

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