Hindi, asked by jagpalsingh15956, 23 hours ago

प्रिया खेल में खेलों में भ्रष्टाचार के ऊपर एक निबंध​

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Answered by ishwari1353
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वर्षों पूर्व जब मनोरंजन और शारीरिक सौष्ठव को बनाये रखने के लिए खेलों को ईजाद किया गया तब मनोरंजन के लिए सामाजिक एकत्रितकरण ही एक जरिया होता था जिनमें छोटे-छोटे खेलों का विकास हुआ लेकिन वर्तमान में खेल हों या राजनीति का खेल दोनों ने ही जनता के विष्वास को छला है एक ओर खेल प्रेमी स्पाॅट फिक्सिंग और फटाफट खेल के चक्कर में अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं वहीं आये दिन उजागर होते घोटालों की बढ़ती फेहरिस्त से आमजन बेहाल है। खेलों में भी राजनीति इस कदर घर कर गई है कि अब वहां भी कुछ ढंग का नहीं गया है, खिलाडि़यों से लेकर टीम प्रबंधन और तो और उच्चाधिकारियों के तार जुड़े होने से खेल प्रेम को बहुत धक्का लगा है। इस पर और शर्मनाक बात क्या होगी कि कई लोग खेलों में भ्रष्टाचार को वाजिब करार दिये जाने के पक्ष में आगे आ रहे हैं, क्या ऐसे में कुछ दिनों में वही लोग राजनीति में भी भ्रष्टाचार को लागू नही कर देंगे।

देखा जाए तो राजनीति खेल पर हावी रहती है राजनीति व्यक्ति खेलों में उच्चस्थ पदों पर आसीन रहते हैं और खेलों को प्रभावित करते हैं प्रतिभावान खिलाडि़यों को आगे लाने की बजाए भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया जाता है जिसे नकारा नहीं जा सकता है। खेलों को किसी न किसी रूप में राजनीति की छत्र – छाया में ही बढ़ना होता है दूसरी और राजनीति भी कई पायदानों को चढ़ खेल के रूप में विकसित होती नजर आ रही है। दलबदल, गठबंधन और खरीद-फरोख्त और आये दिन होते घोटाले और धांधलियों में नेताओं की संलिप्तता से कोई अनजान नहीं है कार्यवाही तो नाम की है साहब इस्तिफे से काम चलाइए। जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है।

खेलों की ही बात कर लें भद्रजनों का खेल माने जाने वाले क्रिकेट के दीवाने कई हैं और इस खेल ने भारत को अलग पहचान दिलाई है वल्र्ड का सपना दो बार साकार हुआ और आज भी भारत की टीम पहले तीन स्थानों में रहती है। रिकाॅर्डों के बादषाह जिन्हें दूसरा सर डाॅन ब्रेडमेन और क्रिकेट का भगवान माना जाता है भारत की देन है कपिल देव रवि शास्त्री सुनील गावस्कर लाला जी ये नाम तो विष्व में सभी जानते हैं लेकिन खेलों में पैसा आने से खेलों से खेल की भावना कहीं बहकर चली गई और जल्दी अमीर बनने तथा नाम पाने के लिए खिलाडि़यों ने जो रास्ता चुना उससे खेल शर्मसार हुआ हालांकि ये कतई नहीं माना जायेगा कि अब क्रिकेट को बंद कर दिया जाए या आईपीएल जैसे फटाफट श्रेणी के क्रिकेट की रूपरेखा को क्रिकेट के शब्दकोष से ही हटा दिया जाए बल्कि खेलों को पुनः अपनी गरिमा और दर्षकों तथा श्रोताओं का विष्वास कायम करना होगा।

चलते रहने का नाम जिंदगी है कुछ खिलाडि़यों ने खेल का अपमान किया लेकिन कई प्रतिभावान खिलाड़ी जो अभावों में जी रहे हैं लेकिन मेहनत कर रहे हैं क्रिड़ासंघों को चाहिए ऐसी प्रतिभाओं को आगे लाए। खेलों में भ्रष्टाचार हो सकता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन उसे रोका भी जा सकता है इससे भी इंकार नहीं किया जाना चाहिए जरूरत सिर्फ व्यवस्था को समझने और कानून बनाने की है।

इस प्रकार यदि खेलों के बिगड़ते स्वरूप पर गर्माती राजनीति पर गौर फर्माएं तो ज्ञात होगा कि ऐसे नेताओं को पहले अपने क्षेत्र में सफाई किए जाने की जरूरत है । वर्ना खेल में राजनीति हो चाहे राजनीति का खेल ज्यादा दिनों तक जनता से खिलवाड़़ नहीं कर पायेंगे।

बार-बार के बढ़ते पेट्रोल डीजल के दामों ने महंगाई को सुरषा का मुंह बनाया है वि़द्युत दरें बढ़ाई गईं तथा घरेलु उपभोक्ताओं को दिये जाने वाले सिलेण्डरों में भी कमी की गई है जबकि सरकार को गैस और तेल के दोहन को कम किये जाने के लिए विकल्प खोजने की दरकार थी। हर वस्तु मुफ्त में दे देने से जनता भिखारी बन जायेगी जबकि सरकार को रोजगार देना चाहिए व्यावसायिक षिक्षा दी जानी चाहिए उच्च षिक्षा पर नाममात्र का ब्याज सुनिष्चित करना चाहिए आखिर छात्र ही देष का भविष्य होते हैं उनके लिए सरकार को सोचना ही होगा। लेपटाॅप और टेबलेट तो वे खुद ही खरीद लेंगे बस उन्हें उचित षिक्षा और रोजगार दिये जाने की जरूरत है। निष्चित तौर पर ऐसे में आने वाले कुछ वर्षों में किसी भी राजनीतिक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने वाला है। छोेटे-छोटे क्षेत्रीय दलों और कार्य करने वाली पार्टियां जो हाल ही में आमजन के लिए विषेष तौर पर बनी हैं उनके द्वारा कड़ी टक्कर इस गंदे राजनीति के खेल को दी जायेगी । चाहे मीडिया की चुनावों में अहम भूमिका रहती है और वह भी चुनावों में राजनीतिक पार्टियों को बहस के लिए आमंत्रित करती रहती है जिससे पारदर्षिता और जवाबदेही का वातावरण बन रहा है। निःसंदेह आने वाला समय राजनीति और खेल दोनों के लिए ही अच्छा होगा।

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