प्र0.11- अधोलिखित गधांश पठित्वां प्रश्नानम् उत्ताणि लिखत।
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अस्मिनजगति सर्वधनेषु विद्यैव सर्वश्रेष्ठं धनम् । विद्याधनेन विहीन
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मानवः अस्ति सः मूर्ख असभ्यः इति कथ्यते। ज्ञानेने कवना यथा पशु
धर्म - अधर्मयोः )
विचारं कर्तुं न शक्नोति तथैव मानवोडपि विघया विहीनः पापपुण्ययोः
कर्तव्य अकर्तव्ययोः विचारें कर्तं न समर्थः । विद्याविहीन: मानवः अन्धः
एव इति कथ्यते।
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Answer:
त्तर –
(क) पुराने समय में हँसी को इसलिए महत्व दिया, क्योंकि वे जानते थे और कहते थे कि एक बार हँस लेना शरीर को स्वस्थ रखने की सबसे अच्छी दवा है। हँसी न जाने कितने कला-कौशलों से अच्छी है। जितना अधिक हँसोगे उतनी ही आयु बढ़ेगी। उस समय लोगों का यह भी मानना था कि हँसी-खुशी ही जीवन है। जो रोते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। वे हँसी को सबके लिए बहुत ही काम की वस्तु मानते थे।
(ख) हेरीक्लेस और डेमाक्रीटस का उदाहरण देकर लेखक बताना चाहता है कि सदा अपने कर्मों को खीझने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया और प्रसन्न रहने वाला डेमाक्रीटस 109 वर्ष जिया। प्रसन्नता और हँसी सुखमय स्वस्थ जीवन के आधार हैं। अत: जो लोग दीर्घायु बनना चाहते हैं, उन्हें सदैव प्रसन्न और हँसमुख रहना चाहिए।
(ग) किसी डॉक्टर ने हँसी को जीवन की मीठी मदिरा इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार मदिरा की अल्प मात्रा के सेवन से व्यक्ति स्वयं को तन-मन से प्रसन्न महसूस करने लगता है और अपना दुख भूल जाता है, उसी प्रकार हँसी भी व्यक्ति को शरीर और मन से प्रसन्न बनाती है। वह व्यक्ति की पाचनशक्ति बढ़ाती है, उसका रक्तसंचार बढ़ाती है। इससे व्यक्ति अपना दुख भूलकर स्वयं को प्रसन्नचित्त महसूस करता है।
(घ) हँसी उदास-से-उदास व्यक्ति के चित्त को प्रफुल्लित कर देती है, पाचन-शक्ति बढ़ाती है, रक्त को चलाती है और अधिक पसीना लाती है। हँसी एक शक्तिशाली दवा है। हँसी जी बहलाती है, बुद्ध को निर्मल करती है। हँसी वैर से बचाती है। हँसी हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है क्योंकि जो भी जी से हँसता है, बुरा नहीं लगता है बल्कि ऐसे व्यक्ति को देखना अच्छा लगता है।
(ङ) हॅसी की महत्ता
(च) पाचन की शक्ति संबंध तत्पुरुष
मुर्दा जैसे दिलवाला कर्मधारय समास