प्र012 टेरिडोफाइटा समूह का सबसे बड़ा वर्ग है, इस कथन के तीन मुख्य कारण बताइये।
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टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) वनस्पतिज्ञों द्वारा किए गए पौधों के कई विभागों में से एक विभाग है। यह एक ओर पुष्प और बीज उत्पादक ब्राइटोफाइटा से और दूसरी ओर पुष्प और बीज न उत्पन्न करनेवाले जल के पौधों, "मॉसों" (mosses), से भिन्न होता है, तथापि इन दोनों वर्गों के पौधों के गुणों से कुछ कुछ गुणों में समानता रखता है। स्थल पर उत्पन्न होनेवाले पौधों को स्परमाटो-फाइटा (spermatophyta) और केवल जल में उत्पन्न होनेवाले पौधों को थैलोफाइटा (Thallophyta) कहते हैं। टेरिडोफ़ाइटा फर्न और फर्न किस्म के पौधे हैं। इनमें कुछ पौधे आज भी पाए जाते हैं, पर एक समय, 35 करोड़ वर्ष पूर्व, डिवोनी युग में इनका बाहुल्य और साम्राज्य था, जैसा इनके फाँसिलों से पता लगता है और ये संसार के प्रत्येक भाग में फैले हुए थे। कोयले के फॉसिलों में ये विशेष रूप से पाए जाते हैं। टेरिडोफाइटा ही कोयला क्षेत्र की उत्पत्ति के कारण हैं। ये कुछ सेंटीमीटर से लेकर 30 मीटर तक ऊँचे होते थे। लगभग सात करोड़ वर्षों तक पृथ्वीतल पर इनका आधिपत्य रहा था। बाद में जलवायु के परिवर्तन से इनका ह्रास होना आरंभ हुआ और विशेषत: इनके बड़े-बड़े पेड़ अब बिलकुल लुप्त हो गए हैं। इनका स्थान क्रमश: विवृतबीज (gymnosperm) और आवृतबीज (angiosperm) कोटि के पौधों ने ले लिया है, पर आज भी छोटे कद के कुछ टेरिडोफाइटा पाए जाते हैं। ये उष्णकटिबंध देशों में विशेष रूप से उपजते हैं, यद्यपि कुछ ठंडे, उत्तरी प्रदेशों में भी पाए गए हैं। अभी तक इनकी छ: हजार जातियाँ मालूम हो सकी हैं जबकि पुष्प और बीज उत्पन्न करनेवाले पौधों की संख्या लगभग एक लाख पचास हजार है।
अनुक्रम
1 गुणधर्म एवं विशेषताएँ
2 टेरिडोफाइटा का जीवनचक्र
3 वर्गीकरण
4 मेटिनियस द्वारा वर्गीकरण
5 बाहरी कड़ियाँ
गुणधर्म एवं विशेषताएँ
टेरिडोफाइटा में फूल नहीं लगते, पर इनमें वास्तविक जड़ें होती हैं। अधिकांश पौधों में सुविकसित पत्तियाँ होती हैं। इनके ऊतक मॉस के ऊतकों से अधिक विकसित होते हैं। कुछ फॉसिलों में जड़ें और पत्तियाँ नहीं पाई गई हैं। ये संवहनीय (vascular) पौधे हैं। इनका प्रचारण (propagation) बीजों से नहीं वरन् बडे सूक्ष्म बीजाणुओं से होता है, जो बहुत बड़ी संख्या में बीजाणुधानिओं (sporangia) से बनते हैं। इनके बीजाणु अंकुरित होकर फर्न नहीं बनते, अपितु ये सूक्ष्म और नगण्य सूकायक (thallus) बनते हैं, जिनमें लैंगिक इंद्रियों जैसे भाग रहते हैं। इनमें प्रधानियाँ (antheridea) होती हैं। जिनसे जल में चलनेवाले युग्मक (gametes) उन्मुक्त होते हैं। इनमें फलास्क के आकार की आदियोनि (archegonia) या स्त्रीयुग्मक (female gamete) रहते हैं। इन दोनों के मिलने से संसेचन होता है। पुंयुग्मज तैरते हुए स्त्रीयुग्मज के पास पहुँचकर संसेचन करते हैं। संसेचन के बाद सूकायक से छोटा पौधा विकसित होता है और ज्योंही नया पौधा जड़ बनाता है, पुराना पौधा मर जाता है।
टेरिडोफाइटा का जीवनचक्र
टेरिडोफाइटा के जीवनचक्र का विवरण निम्नलिखित है:
टेरिडोफाइटा का जीवनचक्र दो पीढ़ियों में बँटा हुआ है। ये पीढ़ियाँ एक दूसरी से बिलकुल भिन्न होती हैं। वस्तुत: एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी से एकातरण करती है। बागों में जो फर्न पाए जाते हैं, वे स्पोरोफाइट (sporophyte) कहलाते हैं। इनका प्रकंद जमीन के अंदर होता है। ऊपरी भाग पर एकांतर पत्तियाँ निकलती हैं। पत्तियाँ पक्षवत् होती हैं। इनके प्राक्ष (pinnae) होते हैं। कुछ पत्तियों के नीचे की ओर किनारे पर उभरी लकीरें भी होती हैं, जिन्हें धानीगुच्द (Sorus) कहते हैं। धानीगुच्छ में एक वृंत (stalk) और एक संपुटिका (capsule) होती है। संपुटिका की दीवार हरी कोशिकाओं की होती है, जिसकी कुछ कोशिकाएँ तलयमुख (annulus) और कुछ स्फुटनमुख (stomium) होती हैं। संपुटिका के अंदर विभाजन द्वारा 16 बीजाणु कोशिकाएँ बनती हैं, जिसमें से प्रत्येक चतुर्थक विभाजन द्वारा चार मूल संखयक (haploid) बीजाणु बनाती है। परिपक्व होने पर स्फुटनमुख के स्थान पर संपुटिका की दीवार टूट जाती है और झटके से बीजाणु दूर तक छिटक जाते हैं। बीजाणु बहुत सूक्ष्म, लगभग 0.3 मिमी0 व्यास के होते हैं।
उचित ताप और नमी पाने पर बीजाणु अंकुरित होते हैं। इससे वे युग्मक-सू (Gametophyte) बनते हैं जिन्हें सूकायक (Prothallus) कहते हैं। इनका व्यास तीन से लेकर आठ मिमी0 तक होता हैं। यह किनारे पर एक कोशिका की और बीच में कई कोशिकाओं की, मोटाई का होता है। निचली सतह पर मूलांग (rhizoids) होते हैं। कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) होते हैं। सूकायक की निचली सतह पर आधार और बाजू की ओर पुंधानी और सिरे की ओर आदियोनी होती है। पुंधानी में 20 से लेकर 25 तक ऐंथेरोजॉइड (antherozoids) होते हैं, जो पानी के संपर्क में आने से खुलकर बाहर निकल आते हैं। ये तैरते हुए ऐंकीयोनिया (anchyoinia) तक पहुँच जाते हैं और एंथेरोजॉइड अंडे के साथ संयोग कर युग्मक बनाते हैं। ये युग्मक विभाजन द्वारा भ्रूण बनाते हैं और कोशिका अवस्था में ही जड, पाद, स्तंभ, विभिन्न हिस्से अलग अलग प्रतीत होने लगते हैं। अब स्पोरोफाइट बनना शुरू हो जाता है। उसमें कुछ पत्तियाँ आ जाती हैं और सूकायक नष्ट होने लगते हैं। शीघ्र ही स्पोरोफाइट स्वतंत्र स्थिति में पहुँच जाता है ओर उसकी जड़ें जमीन में लग जाती हैं।
वर्गीकरण
वनस्पतिज्ञों ने टेरिडोफाइटा को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया हैं: