प्र014 खण्ड काव्य एवं महाकाव्य में अंतर लिखिए।
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महाकाव्य में मुख्य चरित्र के जीवन को विविधता और विस्तार के साथ वर्णित किया जाता है। काव्य के यदि दूसरे भाग या भेद की बात की जाये, तो वो खण्ड काव्य होता है. इसमें भी महाकाव्य की भांति कथा का होना अनिवार्य होता है, इसलिए इसे भी प्रबंध काव्य कहा जाता है
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महाकाव्य और खण्ड काव्य में अंतर
काव्य के तीन मुख्य भेद प्रचलित हैं : महाकाव्य, खण्ड-काव्य और मुक्तक काव्य । महाकाव्य और खण्ड काव्य में कथा का होना अनिवार्य है; इसलिए इन दोनों को प्रबंध काव्य कहा जाता है । प्रबंध काव्य के दोनों रुपों में घटना और चरित्र का महत्व होता है । घटनाओं और चरित्रों के संबंध में भावों की योजना प्रबंध काव्य में अनिवार्य है । महाकाव्य में मुख्य चरित्र के जीवन को समग्रता में धारण करने के कारण विविधता और विस्तार होता है ।
खण्ड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता का चित्रण होने के कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता ।
मुक्तक काव्य में कथा-सूत्र आवश्यक नहीं है । इसलिए उसमें घटना और चरित्र के अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना नहीं होती । वह किसी भाव-विशेष को आधार बना कर की गई स्वतंत्र रचना है ।
महाकाव्य और खण्ड-काव्य में अंतर
- व्यक्तियों के आधार पर चरित काव्य लिखने का चलन हो गया था । जैसे - पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, कीर्तिलता आदि । यद्यपि इनमें प्रामाणिकता का अभाव है ।
- लौकिक रस की रचनाएँ : लौकिक-रस से सजी-संवरी रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति रही ; जैसे - संदेश-रासक, विद्यापति पदावली, कीर्तिपताका आदि ।
- रुक्ष और उपदेशात्मक साहित्य : बौद्ध ,जैन, सिद्ध और नाथ साहित्य में उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति है, इनके साहित्य में रुक्षता है । हठयोग के प्रचार वाली रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति इनमें अधिक रही ।
- उच्च कोटि का धार्मिक साहित्य : बहुत सी धार्मिक रचनाओं में उच्चकोटि के साहित्य के दर्शन होते हैं ; जैसे - परमात्म प्रकाश, भविसयत्त-कहा, पउम चरिउ आदि ।
- फुटकर साहित्य : अमीर खुसरो की पहेलियाँ, मुकरी और दो सखुन जैसी फुटकर (विविध) रचनाएँ भी इस काल में रची जा रही थी ।
- युद्धों का यथार्थ चित्रण : वीरगाथात्मक साहित्य में युद्धों का सजीव और ह्रदयग्राही चित्रण हुआ है । कर्कश और ओजपूर्ण पदावली शस्त्रों की
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