Hindi, asked by kaneshsandeep9, 4 months ago

प्र019-निम्नलिखित में से किसी एक गद्यांश की व्याख्या संदर्भ, प्रसंग सहित लिखिए
इतिहास साक्षी है, बहुत बार अकेले चने ने ही भाड़ फोड़ा है; और ऐसा फोडा है कि भाड़ में खिल-खिल
ही नहीं हो गया. उसका निशान तक ऐसा छूमन्तर हुआ कि कोई यह भी न जान पाया कि वह बेचारा
आखिर था कहाँ?

Answers

Answered by deepak35679
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Explanation:

बहुत पुरानी कहावत है कि ”अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता।” कहने का आशय यह कि एक नेता या शासक चाहे वह कितना भी शक्तिशाली और सक्षम क्यो न हो, अकेले कोई बुनियादी परिवर्तन नही कर सकते, जब तक कि जनता उक्त परिवर्तन के लिए मानसिक रुप से तैयार नही हो। अक्सर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरु अथवा श्रीमती इंन्दिरा गांधी के सन्दर्भ में यही कहा जाता है कि भले ही वह कितने शक्तिशाली रहे हो, पर ”अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता।” लेकिन अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है, यह साबित कर दिखाया है- गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। अपने दस वर्ष के कम समय में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होने गुजरात का जिस ढंग से कायाकल्प किया है, और गुजरात को विकास की नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया है, वह सचमुच में चमत्कृत कर देने वाला है।

भारत सरकार विगत कई वर्षो से गंगा-काबेरी समेत देश की प्रमुख नदियों को जोड़ने की बात करती रही है। एन.डी.ए. शासन के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से विचार करते हुए इस चिरप्रतीक्षित योजना को साकार रुप देने का प्रयास किया था, लेकिन वर्ष 2004 में एन.डी.ए. सरकार जानें और यू.पी.ए. सरकार आने पर इस महत्वाकांक्षी योजना को तितांजलि दी गई। बावजूद इसके गुजरात मे नरेन्द्र मोदी ने नदियों को जोड़ने की योजना को साकार कर दिखा दिया। जो साबरमती नदी गर्मियों में सूख जाती थी, और नर्मदा का पानी ब्यर्थ समुद्र में बह जाता था, उस साबरमती नदी को नर्मदा नदी से जोड़ने का परिणाम यह हुआ कि साबरमती नदी से अहमदाबाद शहर को भरपूर पानी मिल रहा है। इससे गुजरात में जो अन्य नदिया भी सूखी रहती थी वह भी जलमग्न रहती है, क्योंकि नर्मदा में जब कभी बाढ़ आती है तो वह पानी नहरों के माध्यम से दूसरी नदियों में डाल दिया जाता है। गुजरात में इन नदियों को जोड़ने का दूरगामी परिणाम यह हुआ है कि सिर्फ नदियां ही जल से भरपूर नही रहती, बल्कि अन्य जलाशय, कुंए एवं टयूबबेल भी रिचार्ज रहते है। उत्तर गुजरात का बनासकाठा जिला सदैव सूखा पीड़ित रहता था, मगर अब ऐसा नही है। नर्मदा परियोजना के माध्यम से गुजरात की 23 नदियां जुड़ जाने से गुजरात में एक क्रान्तिकारी बदलाव हो गया है और गुजरात पूरी तरह सूखा बाढ़ एवं जल संकट से मुक्त हो चुका है। जैसा कि कहा गया है कि ”प्रत्यक्षं किं प्रमाणम” और इससे केन्द्र सरकार भी प्रेरणा लेकर इस दिशा में आगे बढ़ सकती थी। पर ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन नरेन्द्र मोदी जैसा राजनेता ही कर सकता है। जो दावे के साथ कह सकता है – मैं न खाता हूं और न खाने देता हूं।

वर्ष 2002 के गुजरात दंगो को लेकर मोदी के विरुद्ध बहुत कुछ अब तक प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन यह एक अहम सच्चाई है कि सन 1970 से 2002 के बीच 443 दंगों का इतिहास रखने वाला गुजरात आज पूरी तरह दंगा मुक्त हो चुका है। जैसा कि वीर संघवी ने 21 अप्रैल 2002 को हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा था – यह दंगे गोधरा के जवाब में थे। जहां तक गोधरा का सवाल है तो यह सभी को पता है कि अयोध्या में रामजन्म भूमि में प्रतीकात्मक कारसेवा करके लौट रहे 58 रामभक्तों को जिनमें महिलायें एवं बच्चे भी थे, साबरमती एक्सप्रेस में 27 फरबरी को मुस्लिम अतिवादियों द्वारा जिंदा जला दिये गये थे। असलियत यह भी है कि 2002 के गुजरात दंगे वर्ष 1984 के सिक्ख विरोधी दंगो की तरह एकतरफा नही थे, क्योंकि इनमें जहां 662 मुस्लिम मारे गये थे वही 190 हिन्दू भी मारे गये थे जबकि इनमें 80 हिन्दू पुलिस की गोली से मारे गये थे। जबकि 1968 के अहमदाबाद के दंगो में ही 1800 लोग मारे गये थे।

अब 2002 के गुजरात दंगो को लेकर चाहे जितना हो-हल्ला मचाया जावे, पर असलियत यह है, कि मोदी के विरुद्ध इतने घनघोर मुस्लिम विरोधी प्रचार के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हे 24 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला था। यहां तक वर्ष 2008 के नगर निगम चुनावो में गोधरा जैसे नगर निगम में भी जो मुस्लिम बाहुल्य है, और जहां पर सदैव कांग्रेस जीतती थी वहां के नगर निगम में भाजपा को बहुमत मिला। आने वाले समय में इस बात की पूरी संभावना है कि मुस्लिमो में मोदी के प्रति पूरी तरह भ्रान्तियां दूर हो सके, और वह राष्ट्रवादी अधिष्ठान के आधार पर हिन्दु-मुस्लिम एकता के सच्चे सेतु बन सके।

यह भी सभी को पता होगा कि गत वर्षो आतंकवादियों ने अहमदाबाद में विस्फोट कर लोगों की जाने ली थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि अमूमन आतंकवादियों ने इधर 2-3 वर्षो में पूरे देश में जितनी बडी वारदातें की थी, उन सभी के सूत्र मिल गए, और आतंकवादी पकडे गए। तभी से गुजरात में ही नही, बल्कि पूरे देश में कोई बड़ी आतंकी घटना नही हुई। कहने का आशय यह है कि जिन आतंकवादियों को पकडना तो दूर उनके सुराग तक नही मिल पाए थे उन्हे नरेन्द्र मोदी के चलते गुजरात पुलिस ने धर दबोचा और आतंकवादियों की कमर तोडने में अहम रोल निभाया।

कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि – अकेला चना भी भाड़ फोड सकता है। इतिहास में इस बात के उदाहरण है, जब कमाल अतातुर्क ने कठमुल्लापन से ग्रस्त टर्की को एक विकसित और आधुनिक राष्ट्र में बदल दिया था। लेकिन कमाल अतातुर्क और नरेन्द्र मोदी में बड़ा फर्क है । कमाल अतातुर्क पूरे तुर्की के तानाशाह थे, जिन्हे कुछ भी करने में कोई रोक-टोक नही थी। जबकि नरेन्द्र मोदी ठहरे मात्र एक राज्य के मुख्यमंत्री, जिनके सिर पर सदैव केन्द्र सरकार की तलवार लटकी रहती है। फिर भी नरेन्द्र मोदी ने गुजरात का जिस ढंग से कायाकल्प किया है, उससे इस बात का एहसास तो हो ही जाता है, कि यदि राम जैसे राजा हो जिनका लक्ष्य लोक आराधना हो तो रामराज्य आने में कोई समस्या नही है। इसी तरह से कहा जा सकता है कि मोदी जैसे राष्ट्र एवं जनता के लिए प्रतिबध्द शासक हो तो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी आमूल-चूल परिवर्तन होना असंभव नही है।

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