Hindi, asked by surajkumarsvbsbs14, 3 months ago

प्र024 निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
कबीर संगति साधु की, जो करि जाने कोय।
सकल बिरछ चन्दन भये, बाँस न चन्दन होय ।।
कबीर कुसंग न कीजिये, पाथर जल न तिराय ।
कदली सीप भुजंग मुख, एक बूंद तिर भाय ।।
अथवा
छोड़ देंगी मार्ग तेरा विघ्न बाधाएँ सहम कर
काल अभिनंदन करेगा आज तेरा समय सादर ।
गगन गायेगा गरंजकर गर्व से तेरी कहानी
वक्ष पर पद चिह्न लेगी धन्य हो धरती पुरानी।।
गांग सहित त्यारशा कीजिए
Conf​

Answers

Answered by bhatiamona
0

निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या इस प्रकार है :

कबीर संगति साधु की, जो करि जाने कोय।

सकल बिरछ चन्दन भये, बाँस न चन्दन होय ।।

संदर्भ : प्रस्तुत साखी ‘अमृतवाणी’ नामक साखियों से ली गई है | यह सखियाँ कविवर कबीरदास द्वारा लिखी गई है |

प्रसंग : साखियों में कबीर जी ने सत्संग के महत्व के बारे में समझाया है |

व्याख्या : कबीर जी समझाते है कि जो मनुष्य सत्संग के महत्व को समझता है , वही उसका लाभ उठा सकता है | जिस प्रकार वन में चंदन की खुशबु को आस-पास के वृक्ष भी महसूस कर लेते है , परंतु बांस अपने स्वभाव के कारण उसकी खुशबु को महसूस नहीं कर पाता है , वह सुखा ही रहता है |

गुरुओं के महत्व को वही लोग ग्रहण करते है जो उनके साथ रहते और उनसे प्रेम करते है , और जो गुरुओं से प्यार नहीं करते है वह अच्छे गुण कभी भी स्वीकार नहीं कर पाते है |

कबीर कुसंग न कीजिये, पाथर जल न तिराय ।

कदली सीप भुजंग मुख, एक बूंद तिर भाय ।।

संदर्भ : प्रस्तुत साखी ‘अमृतवाणी’ नामक साखियों से ली गई है | यह सखियाँ कविवर कबीरदास द्वारा लिखी गई है |

प्रसंग : साखि में कबीर जी ने कुसंग की बुराई के बारे में समझाया है |

व्याख्या : बीर जी समझाते है कि मनुष्य को कुसंगति का मार्ग कभी नहीं अपनाना चाहिए | कुसंगति उस पत्थर के समान है जो पानी में डूबता है और साथ में बैठाने वालों को भी डुबो देता है | संसार में जैसा संग करोगे वैसा ही फल मिलेगा। स्वाति नक्षत्र की बूंद तो एक है लेकिन वह केले के ऊपर गिरती है तो कपूर बन जाती है,सीपी के मुँह में गिरती है तो मोती बन जाती है  और वही बूंद यदि सर्प के मुंह में गिरती है तो विष बन जाती है | गुण के साथ समाहित होकर तीन प्रकार का फल प्राप्त करती है।

Similar questions