Biology, asked by dhirajbarman627, 5 months ago

प्र05 मोनेरा जगत के लक्ष्ण बताइये। (कोई-2)​

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मोनेरा (Monera) जगत में सभी प्रोकैरिओटिक जीवों को सम्मिलित किया गया है। इस जगत के जीव सूक्ष्मतम तथा सरलतम होते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस जगत के जीव प्राचीनतम हैं। मोनेरा जगत के जीव उन सभी स्थानों में पाये जाते हैं जहाँ जीवन की थोड़ी भी संभावना मौजूद है, जैसे-मिट्टी, जल, वायु, गर्म जल के झरने (80°C तक), हिमखण्डों की तली, रेगिस्तान आादि में।

मोनेरा जगत के जीवधारियों के मुख्य लक्षण

इनमें प्रोकैरिओटिक प्रकार का कोशिकीय संगठन पाया जाता है। अर्थात् कोशिका में आनुवंशिक पदार्थ. किसी झिल्ली द्वारा बँधा नहीं होता बल्कि जीवद्रव्य में बिखरा पड़ा रहता है।

इनकी कोशिका भिति अत्यंत सुदृढ़ रहती है। इसमें पोलीसैकेराइड्स के साथ एमीनो अम्ल भी होता है।

इनमें केन्द्रकीय झिल्ली अनुपस्थित होता है।

इनमें माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय तथा रिक्तिका भी अनुपस्थित होती हैं।

ये प्रकाशसंश्लेषी, रसायन संश्लेषी या परपोषी होते हैं।

कुछ सदस्यों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण (Fixation of atmospheric nitrogen) की क्षमता पाई जाती है।

मोनेरा जगत का वर्गीकरण (Classification of monera kingdom): अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से मोनेरा जगत को चार भागों में विभाजित किया गया है-

जीवाणु (Bacteria): ये वास्तव में पौधे नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति का रायायनिक संगठन पादप कोशिका के रासायनिक संगठन से बिल्कुल भिन्न होता है। यद्यपि कुछ जीवाणु प्रकाश संशलेषण करने में सक्षम होते हैं लेकिन उनमें विद्यमान बैक्टीरियोक्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल से बिल्कुल भिन्न होता है।

एक्टिनोमाइसिटीज (Actinomycetes): इन्हें कवकसम जीवाणु भी कहते हैं। ये वे जीवाणु हैं जिनकी रचना कवक जाल के समान तन्तुवत या शाखित होती है। पहले इन्हें कवक माना जाता था, परन्तु प्रोकैरिओटिक कोशिकीय संगठन के कारण इन्हें अब जीवाणु माना जाता है। स्ट्रेप्टोमाइसीज इस समूह का एक महत्वपूर्ण वंश है। कवकसम जीवाणुओं की अनेक जातियों से विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक (Antibiotics) प्राप्त किए जाते हैं।

आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria): ऐसा माना जाता है कि ये प्राचीनतम जीवधारियों के प्रतिनिधि हैं। इसलिए इनका नाम आर्की (Archae) अर्थात् बैक्टीरिया रखा गया है। इसलिए इन्हें प्राचीनतम जीवित जीवाश्म कहा जाता है। जिन परिस्थितियों में ये निवास करते हैं उनके आधार पर आक बैक्टीरिया को तीन समूहों में विभाजित किया गया है-मैथेनेजोन, हैलोफाइल्स तथा थर्मोएसिडोफाइल्स।

साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria): साइनोबैक्टीरिया साधारणत: प्रकाश संश्लेषी (Photosynthetic) जीवधारी होते हैं। इन्हें पृथ्वी का सफलतम जीवधारियों का समूह माना जाता है। संरचना के आधार पर इनकी कोशिकाओं की मूलभूत संरचना शैवालों की अपेक्षा जीवाणुओं से अधिक समानता रखते हैं। साइनोबैक्टीरिया को नील-हरित शैवाल (Blue green algae) के नाम से भी जाना जाता है। ये कवक से लेकर साइकस तक अनेक जीवधारियों के साथ सहजीवी के रूप में रहते हैं।

❤Sweetheart❤

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मोनेरा (Monera) जगत में सभी प्रोकैरिओटिक जीवों को सम्मिलित किया गया है। इस जगत के जीव सूक्ष्मतम तथा सरलतम होते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस जगत के जीव प्राचीनतम हैं। मोनेरा जगत के जीव उन सभी स्थानों में पाये जाते हैं जहाँ जीवन की थोड़ी भी संभावना मौजूद है, जैसे-मिट्टी, जल, वायु, गर्म जल के झरने (80°C तक), हिमखण्डों की तली, रेगिस्तान आादि में।

मोनेरा जगत के जीवधारियों के मुख्य लक्षण

इनमें प्रोकैरिओटिक प्रकार का कोशिकीय संगठन पाया जाता है। अर्थात् कोशिका में आनुवंशिक पदार्थ. किसी झिल्ली द्वारा बँधा नहीं होता बल्कि जीवद्रव्य में बिखरा पड़ा रहता है।

इनकी कोशिका भिति अत्यंत सुदृढ़ रहती है। इसमें पोलीसैकेराइड्स के साथ एमीनो अम्ल भी होता है।

इनमें केन्द्रकीय झिल्ली अनुपस्थित होता है।

इनमें माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय तथा रिक्तिका भी अनुपस्थित होती हैं।

ये प्रकाशसंश्लेषी, रसायन संश्लेषी या परपोषी होते हैं।

कुछ सदस्यों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण (Fixation of atmospheric nitrogen) की क्षमता पाई जाती है।

मोनेरा जगत का वर्गीकरण (Classification of monera kingdom): अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से मोनेरा जगत को चार भागों में विभाजित किया गया है-

जीवाणु (Bacteria): ये वास्तव में पौधे नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति का रायायनिक संगठन पादप कोशिका के रासायनिक संगठन से बिल्कुल भिन्न होता है। यद्यपि कुछ जीवाणु प्रकाश संशलेषण करने में सक्षम होते हैं लेकिन उनमें विद्यमान बैक्टीरियोक्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल से बिल्कुल भिन्न होता है।

एक्टिनोमाइसिटीज (Actinomycetes): इन्हें कवकसम जीवाणु भी कहते हैं। ये वे जीवाणु हैं जिनकी रचना कवक जाल के समान तन्तुवत या शाखित होती है। पहले इन्हें कवक माना जाता था, परन्तु प्रोकैरिओटिक कोशिकीय संगठन के कारण इन्हें अब जीवाणु माना जाता है। स्ट्रेप्टोमाइसीज इस समूह का एक महत्वपूर्ण वंश है। कवकसम जीवाणुओं की अनेक जातियों से विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक (Antibiotics) प्राप्त किए जाते हैं।

आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria): ऐसा माना जाता है कि ये प्राचीनतम जीवधारियों के प्रतिनिधि हैं। इसलिए इनका नाम आर्की (Archae) अर्थात् बैक्टीरिया रखा गया है। इसलिए इन्हें प्राचीनतम जीवित जीवाश्म कहा जाता है। जिन परिस्थितियों में ये निवास करते हैं उनके आधार पर आक बैक्टीरिया को तीन समूहों में विभाजित किया गया है-मैथेनेजोन, हैलोफाइल्स तथा थर्मोएसिडोफाइल्स।

साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria): साइनोबैक्टीरिया साधारणत: प्रकाश संश्लेषी (Photosynthetic) जीवधारी होते हैं। इन्हें पृथ्वी का सफलतम जीवधारियों का समूह माना जाता है। संरचना के आधार पर इनकी कोशिकाओं की मूलभूत संरचना शैवालों की अपेक्षा जीवाणुओं से अधिक समानता रखते हैं। साइनोबैक्टीरिया को नील-हरित शैवाल (Blue green algae) के नाम से भी जाना जाता है। ये कवक से लेकर साइकस तक अनेक जीवधारियों के साथ सहजीवी के रूप में रहते हैं।...

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