प्र5. निम्नलिखित कविता का अर्थ संदर्भ, प्रसगं सहित लिखिए
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच मे बिचरूँ यही चाहता मन है।
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प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ पथिक कविता से ली गई है| यह कविता रामनरेश त्रिपाठी द्वारा लिखी गई है| कवि ने कविता में समुद्र-तट के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है|
व्याख्या : प्रस्तुत कविता में पथिक कहता है कि आकाश में सूर्य के सामने बादलों का समूह हर क्षण में नए रूप में बदलकर निराले रंग में दिखाई दे रहा है| नीचे नीला समुद्र है तथा ऊपर मन को हरने वाला नीला आकाश है। ऐसे में पथिक का मन चाहता है कि वह मेघ पर बैठकर इन दोनों के बीच में रहने को करता है| वह संसार की सभी दुखों से दूर मेघ पर बैठकर समुद्र की लहरों की सवारी करना चाहता हूँ|
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