प्रबंध के किन्हीं तीन कार्यों को समझाइए
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कार्य # 1. नियोजन (Planning):
नियोजन मस्तिष्क की एक प्रक्रिया है, जिसमें बुद्धिमता, कल्पना शक्ति, अग्रदृष्टि पक्के इरादे आदि की आवश्यकता होती है । अतः नियोजन का अर्थ यह है कि पूर्व में ही यह निश्चय करना कि किसी कार्य को किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किस तरह, किस स्थान पर किस समय तथा किसके द्वारा किया जाना चाहिए? दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि नियोजन वांछित परिणामों को प्राप्त के लिए कार्य की विधि ज्ञात करना है ।
कार्य # 2. संगठन (Organising):
नियोजन द्वारा उद्देश्य एवं लक्ष्य आदि निर्धारित करने के पश्चात उन्हें कार्यान्वित करना होता है, जिन्हें प्रबंध ‘संगठन’ के माध्यम से करता है । संगठन का आशय योजना द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र से है।उपक्रम की योजनाएं चाहे कितनी ही अच्छी एवं आकर्षक क्यों न हों, यदि उनको कार्यान्वित करने के लिए संगठन का अभाव है तो सफलता की कामना करना निष्फल ही होगा । अतः नियोजन द्वारा निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को क्रियान्वित करने तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि एक ऐसे कुशल एवं प्रभावी संगठन का निर्माण किया जाये जिसमें नियुक्त सभी अधिकारी एवं कर्मचारी अपने-अपने लिए निर्धारित कार्यों को इस प्रकार सम्पन्न करें कि उनके कार्यों में किसी प्रकार की कोई कठिनाई उत्पन्न न हो ।
कार्य # 3. नियुक्तियां (Staffing):
किसी भी संगठन के ढांचे का निर्माण तब ही सम्भव है जब उसमें कुशल एवं योग्य व्यक्ति नियुक्त हों । नियुक्तियाँ करना प्रबन्ध का प्रशासनिक ‘जिसका अर्थ है- संगठन की योजना के अनुसार अधिकारियों तथा कर्मचारियों की नियुक्ति करना, उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना, पदोन्नति, स्थानान्तरण, सेवा मुक्ति आदि की व्यवस्था करना ।
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प्रबंध इन कार्यों को प्राप्य उद्देश्यों में परिवर्तित कर देता है तथा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के मार्ग निर्धारित करता है। इनमें सम्मलित हैं-समस्याओं का समाधान, निर्णय लेना, योजनाएँ बनाना, बजट बनाना, दायित्व निश्चित करना एवं अधिकारों का प्रत्यायोजन करना। चित्र 1.1-टीम में साथ होने से प्रत्येक अधिक कार्य करता है।