प्रबंधन के सिद्धांतों को सभी प्रकार और संगठनों के आकार पर लागू करने का इरादा है। यह कथन दर्शाता है कि प्रबंधन के सिद्धांत हैं) *
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Explanation:
प्रबंध के सिद्धांतों का विकास संपादित करें
प्रबंध के इतिहास की खोज करते हुए कई विचारधाराओं से परिचित होते हैं जिन्होंने प्रबंधकीय व्यवहार को दिशा देने के सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की है। इन विचारधाराओं को छः अलग-अलग चरणों में विभक्त किया जा सकता है-
1- प्रारंभिक स्वरूप
2- प्राचीन प्रबंध के सिद्धांत
3- नवीन प्रतिष्ठित सिद्धांत - मानवीय संबंध मार्ग
4- व्यावहारिक विज्ञान मार्ग - संगठनात्मक मानववाद
5- प्रबंधकीय विज्ञान/परिचलनात्मक अनुसंधान
6- आधुनिक प्रबंध
प्रारंभिक स्वरूप संपादित करें
सर्वप्रथम प्रबंध संबंधी विचारों को 3,000-4,000 ई. पू. में दर्ज किया गया। मिस्र के शासक क्योपास को 2,900 ई. पू. में एक पिरामिड के निर्माण के लिए 1 लाख आदमियों की 20 वर्ष तक कार्य करने की आवश्यकता हुई। यह 13 एकड़ जमीन पर बनाया गया तथा इसकी ऊँचाई 481 मीटर थी। पत्थर की शिलाओं को हजारों किलोमीटर से लाया जाता था। किवंदति के अनुसार इन पिरामिडों के आसपास के गाँवों में हथौड़े तक की आवाज सुनाई नहीं देती थी। ऐसे यादगार कार्य को बिना सफल प्रबंधक सिद्धांतों का अनुसरण किए पूरा करना संभव नहीं था।
क्लासिकी प्रबंध सिद्धांत संपादित करें
इस चरण की विशेषता विवेकशील आर्थिक विचार, वैज्ञानिक प्रबंधन, प्रशासनिक सिद्धान्त, अफसरशाही संगठन हैं। विवेकशील आर्थिक विचार की धारणा थी कि लोग मूलतः आर्थिक लाभों से प्रोत्साहित होते हैं। एल. डब्ल्यू. टेलर एवं अन्य सिद्धान्तकारों का वैज्ञानिक प्रबंधन उत्पादन आदि के लिए एक सर्वोत्तम ढंग पर जोर देता है। हेनरी फेयॉल के समान व्यक्तित्व वाले प्रशासनिक सिद्धांतवेत्ताओं ने पद एवं व्यक्तियों को एक सक्षम संगठन में परिवर्तित करने के लिए सर्वोत्तम मार्ग ढूँढ़ा। अफसरशाही संगठन के सिद्धांतवेत्ता, जिनमें अग्रणी मैक्स वैबर थे, ने अधिकारों के गलत प्रयोग, जिससे प्रभावशीलता समाप्त होती थी, के कारण प्रबंधकीय अनियमितताओं को समाप्त करने के मार्ग की खोज की। यह औद्योगिक क्रांति एवं उत्पादन की कारखाना प्रणाली का युग था। बिना संगठनबद्ध उत्पादन को शासित करने वाले सिद्धांतों का अनुसरण किए बिना बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं था। यह सिद्धांत श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण, मानव एवं मशीन के बीच पारस्परिक संबंध, लोगों का प्रबंधन आदि पर आधारित थे।
नवक्लासिकी सिद्धांत-मानवीय संबंध मार्ग संपादित करें
यह विचार धारा 1920 से 1950 के बीच विकसित हुई। इसका मानना था कि कर्मचारी मात्र नियम, अधिकार शृंखला एवं आर्थिक प्रलोभन के कारण ही विवेक से कार्य नहीं करते बल्कि वह सामाजिक आवश्यकताओं प्रेरणाओं एवं दृष्टिकोण से भी निर्देशित होते हैं। जी. ई. सी. आदि पर ‘हार्थेन’ अध्ययन किया गया। यह स्वभाविक था कि औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक दौर में तकनीक एवं प्रौद्योगिकी पर अधिक जोर था। मानवीय तत्व पर ध्यान देना इस विचारधारा का एक विशिष्ट पहलू था। इस पर ध्यान देना व्यावहारिक विज्ञान के विकास के अग्रदूत के रूप में कार्य करना था। प्रबन्ध के अन्य प्रमुख सिद्धांत-
1.प्रबन्ध के विस्तार का सिद्धांत
2.मानवीय सम्बन्धों का सिद्धांत
3.सन्तुलन का सिद्धांत
4.अपवाद का सिद्धांत
व्यावहारिक विज्ञान मार्ग - संगठनात्मक मानवतावाद संपादित करें
संगठनात्मक व्यवहारकर्ता जैसे क्रिस अएर्गरिस, डगलस मैकग्रैगर, अब्राहम मैसलो एवं लैडरिक-हर्जबर्ग ने इस मार्ग को विकसित करने के लिए मनोविज्ञान शास्त्र, समाज शास्त्र एवं मानव शास्त्र के ज्ञान का उपयोग किया। संगठनात्मक मानवतावाद का दर्शन है जिसमें व्यक्तियों को कार्य स्थल पर एवं घर पर अपनी सभी योग्यताओं एवं रचनात्मक कौशल का उपयोग करना होता है।
प्रबंध विज्ञान/परिचालनात्मक अनुसंधान संपादित करें
यह प्रबंधकों को निर्णय लेने में सहायतार्थ परिमाण संबंधी तकनीक के उपयोग प्रचालन एवं अनुसंधान पर जोर देता है। आधुनिक प्रबंध-यह आधुनिक संगठनों को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है तथा संगठनात्मक एवं मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए आकस्मिक घटना के रूप में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता है।
स्पष्ट है कि प्रबंध विषय का विकास बहुत मंत्रमुग्ध करने वाला रहा है। फैड्रिक विंसलो टेलर एवं हेनरी फेयॉल दो ऐतिहासिक (क्लासकी) व्यवसाय के सिद्धांतों से जुड़े रहे हैं। प्रबंध एक शास्त्र के रूप में अध्ययन में इन दोनों का बड़ा भारी योगदान रहा है। एफ. डब्ल्यू. टेलर एक अमरीकन यांत्रिकी इंजीनियर रहा है जबकि हेनरी फेयॉल एक फ्रांसीसी खदान इंजीनियर। टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंधन की अवधारणा दी जबकि, फेयॉल ने प्रशासनिक सिद्धांतों पर बल दिया।