प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती|| ka arth
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Explanation:
यदि भगवान दीपक हैं तो भक्त उसकी बाती की तरह है जो दिन रात रोशनी देती रहती है।
पंक्तियों का भावार्थ – यह पंक्तियां रैदासबानी नामक पद से लिया गया है l जिसके लेखक संत रैदास है l इन पंक्तियों में रैदास जी ईश्वर और भक्त के सम्बन्ध की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ईश्वर के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नहीं है। यदि भगवान दीपक हैं, तो भक्त वर्तिका के समान है। दोनों मिलकर प्रकाश फैलाते हैं। भगवान मोती हैं तो भक्त धागा हैं, दोनों मिलकर एक सुंदर हार बन जाते हैं। दोनों का मिलन सोने पर सुहागा जैसा है. इसमें दास्य भक्ति शरण तत्व का भी चित्रण किया गया है। वे (रैदास) प्रभुजी को स्वामी मानते हैं और स्वयं को उनका दास या सेवक मानते हैं। इस प्रकार उन्होंने भगवान और भक्तों के बीच के संबंध को उजागर किया है I
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