प्रभुता का शरण- विंब केवल मृगतृष्णा है? प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से ली गयी है?
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Answer:
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित ‘छाया मत छूना’ नामक कविता से ली गई है।
भाव- भाव यह है कि मनुष्य सदैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता है, उसका मन विचलित हो जाता है। जिससे हज़ारों शंकाओ का जन्म होता है। इसलिए उसे इन प्रभुता के फेरे में न पड़कर स्वयं के लिए उचित मार्ग का चयन करना चाहिए। हर प्रकाशमयी (चाँदनी) रात के अंदर काली घनेरी रात छुपी होती है। अर्थात् सुख के बाद दुख का आना तय है। इस सत्य को जानकर स्वयं को तैयार रखना चाहिए। दोनों भावों को समान रुप से जीकर ही हम मार्गदर्शन कर सकते हैं न कि प्रभुता की मृगतृष्णा में फँसकर।
Answer:
bhav
Explanation:
Given, sinA=
4
3
⇒
DC
BC
=
4
3
⇒BC=3k and AC=4k
where k is the constant of proportionality.
By Pythagoras theorem, we have
AB
2
=AC
2
−BC
2
=(4k)
2
−(3k)
2
=7k
2
⇒AB=
7
k
So, cosA=
AC
AB
=
4k
7
k
=
4
7
And tanA=
AB
BC
=
7
k
3k
=
7
3