प्रभ3) राजा रंतिदेव किस यज्ञ के आदर्श माने जाते हैं और उनके जीवन से आप क्या प्रेरणा लेते
हैं? [3]
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राजा रन्तिदेव देव अपनी दयालुता और अतिथि सत्कार के लिए प्रसिद्ध थे। उनके दरबार में लगभग 20,000 नौकर केवल भोजन पकाने के लिए नियुक्त थे। रंतिदेव दिन-रात अतिथियों के स्वागत सत्कार में लगे रहते थे। दिन-रात दान करते रहने के कारण उनका राजकोष खाली गया और फिर वे अपने परिवार सहित अपने राज्य से जंगल में निकल गये। जहाँ उन्हें बड़ी मुश्किल से भोजन प्राप्त होता था।
एक बार कहीं से भोजन प्राप्त होने पर अपने परिजनों को भोजन बांटकर शेष भोजन लेकर भूख से अत्यन्त व्याकुल राजा रंतिदेव जब भोजन करने बैठे तो एक याचक आकर उनसे भोजन की मांग करने लगा तो राजा रंतिदेव एक पल भी देरी न करते हुये निःसंकोच होकर अपना भोजन का थाल याचक के सामने रख दिया।
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