Business Studies, asked by samarthupadhyay6243, 10 months ago

प्रबन्ध का स्थानीय जन समुदाय के प्रति क्या उत्तरदायित्व है?

Answers

Answered by pankajsamaddar77
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Explanation:

कई लेखकों ने प्रबंध की परिभाषा दी है। प्रबंध शब्द एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त किया गया है। वैसे यह किसी भी उद्यम की विभिन्न क्रियाओं के लिए मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है। उपरोक्त उदाहरण एवं वस्तुस्थिति के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया होगा कि प्रबंध वह क्रिया है जो हर उस संगठन में आवश्यक है जिसमें लोग समूह के रूप में कार्य कर रहे हैं। संगठन में लोग अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं लेकिन वह अभी समान उद्देश्य को पाने के लिए कार्य करते हैं। प्रबंध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्य को प्राप्त करने में दिशा प्रदान करता है। इस प्रकार से प्रबंध यह देखता है कि कार्य पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किए जाएँ (अर्थात् प्रभाव पूर्णता) कम-से-कम साधन एवं न्यूनतम लागत (अर्थात् कार्य क्षमता) पर हो।

अतः प्रबंध को परिभाषित किया जा सकता है कि यह उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा कराने की प्रक्रिया है। हमे इस परिभाषा के विश्लेषण की आवश्यकता है। कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका विस्तार से वर्णन करना आवश्यक है। ये शब्द हैं-

(क) प्रक्रिया (ख) प्रभावी ढंग से एवं (ग) पूर्ण क्षमता से।

परिभाषा में प्रयुक्त प्रक्रिया से अभिप्राय है प्राथमिक कार्य अथवा क्रियाएँ जिन्हें प्रबंध कार्यों को पूरा कराने के लिए करता है। ये कार्य हैं- नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियंत्रण जिन पर चर्चा इस अध्याय में एवं पुस्तक में आगे की जाएगी।

प्रभावी अथवा कार्य को प्रभावी ढंग से करने का वास्तव में अभिप्रायः दिए गए कार्य को संपन्न करना है। प्रभावी प्रबंध का संबंध सही कार्य को करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दों में, इसका कार्य अंतिम परिणाम प्राप्त करना है। लेकिन मात्र कार्य को संपन्न करना ही पर्याप्त नहीं है इसका एक और पहलू भी है और वह है कार्यकुशलता अर्थात् कार्य को कुशलतापूर्वक करना।

कुशलता का अर्थ है कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर करना। इसमें एक प्रकार का लागत-लाभ विश्लेषण एवं आगत तथा निर्गत के बीच संबंध होता है। यदि कम साधनों (आगत) का उपयोग कर अधिक लाभ (निर्गत) प्राप्त करते हैं तो हम कहेंगे कि क्षमता में वृद्धि हुई है। क्षमता में वृद्धि होगी यदि उसी लाभ के लिए अथवा निर्गत के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाता है एवं कम लागत व्यय की जाती है। आगत साधन वे हैं जो किसी कार्य विशेष को करने के लिए आवश्यक धन, माल उपकरण एवं मानव संसाधन हों। स्वभाविक है कि प्रबंध का संबंध इन संसाधनों के कुशल प्रयोग से है क्योंकि इनसे लागत कम होती है एवं अन्त में इनसे लाभ में वृद्धि होती है।

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