प्रजा की भलाई के लिए शेरशाह ने क्या किया?
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1. प्रस्तावना:
शेरशाह सूरी मुगलकाल का सर्वश्रेष्ठ मुस्लिम शासक था । शासन प्रबन्ध की दृष्टि से वह एक सफल राजनीतिज्ञ और व्यवस्थापक था ।
एक शासक के रूप में शेरशाह अपने पूर्ववर्ती शासकों में अग्रणी स्थान रखता था । बाबर, अकबर तथा उसके बाद के सभी बादशाहों ने उसी की शासन-नीतियों को अपनाया । भारतीय साम्राज्य में उसने जनता की इच्छानुसार कार्य किये । प्रजाहित की दृष्टि से वह भारत के कौटिल्य, अशोक के समकक्ष तथा यूरोप में हेनरी सप्तम था ।
स्वेच्छाचारी होते हुए भी उसने प्रजाहित को सर्वोपरि रखा । न्याय-धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए उसने राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप कदापि स्वीकार नहीं किया । वह एक महान् प्रतिभाशाली, रचनात्मक बुद्धिवाला, कुशल सेनापति था । राजस्व प्रबन्ध, सैनिक व्यवस्था संगठन, उदार धार्मिक नीति, नवीन योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ-साथ वह प्रशासकीय प्रतिभा से युक्त श्रेष्ठ शासक था ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
शेरशाह का जन्म 1472 में पंजाब के होशियारपुर बैजवाडा ग्राम में हुआ था । उसके बचपन का नाम फरीद था । फरीद के पिता हसन खां ने सुलतान बहलोल लोदी के दरबार में सलाहकार के रूप में नौकरी कर ली थी । उसके पिता कई परगने के सूबेदार थे । फरीद का बचपन सहसराम {बिहार} में बीता । हसन की चार पत्नियां व आठ पुत्र थे । सबसे बड़ी पत्नी अफगानी थी । शेष दासी पत्नियां थीं । फरीद सबसे बड़ी पत्नी का पुत्र था ।
सौतेली माताओं के व्यवहार तथा पारिवारिक झगड़ों से दुखी और परेशान होकर वह 22 वर्ष की अवस्था में जौनपुर आ गया । यहां आकर उसने इस्लामी धर्म-ग्रन्थों का अरबी, फारसी में अध्ययन किया । अपनी योग्यता के कारण वह शीघ्र ही प्रसिद्ध हो गया । उसके पिता हसन खां ने उसे कालान्तर में अपनी दो जागीरों का प्रबन्ध भार सौंप दिया ।
अपने शासनकाल में उसने किसानों, जमींदारों के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित किया । फरीद ने जमीन की नपायी कराकर रिश्वतखोर कर्मचारियों को हटाकर जमींदारों की शोषण प्रवृति पर नियन्त्रण स्थापित किया । उसने किसानों से कहा- ”मैं तुम्हें अधिकार देता हूं कि तुम लगान अदा करने का वही तरीका चुन लो, जो तुम्हारे लिए सबसे फायदेमन्द हो । यदि तुम्हें कुछ तकलीफ हो, तो सीधे मेरे पास चले आओ ।”
अपने शासनकाल में उसने किसानों, जमींदारों के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित किया । फरीद ने जमीन की नपायी कराकर रिश्वतखोर कर्मचारियों को हटाकर जमींदारों की शोषण प्रवृति पर नियन्त्रण स्थापित किया । उसने किसानों से कहा- ”मैं तुम्हें अधिकार देता हूं कि तुम लगान अदा करने का वही तरीका चुन लो, जो तुम्हारे लिए सबसे फायदेमन्द हो । यदि तुम्हें कुछ तकलीफ हो, तो सीधे मेरे पास चले आओ ।”
शेरशाह ने किसानों की दशा को सुधारने के लिए उनकी कठिनाइयों पर विशेष ध्यान दिया । किसानों के खेतों की सुरक्षा करते हुए उसने अकाल तथा कठिनाई के समय उन्हें यथासम्भव सहायता प्रदान की । भूमि की पैमाइश के आधार पर लगान का निर्धारण किया । शेरशाह ने भू-स्वामियों को खबरदार करते हुए कहा- ”किसी भी किसान से अधिक वसूली पर तुम्हारे हिसाब से उसे काटा जायेगा ।”
शेरशाह का शासन निरंकुश होते हुए भी प्रजा के लिए कल्याणकारी था । वह अपने राज्य की बाहरी आक्रमणों से न केवल रक्षा करने पर ध्यान देता था, बल्कि जनता की भौतिक, मानसिक और नैतिक उन्नति को भी अपना कर्तव्य समझता था । वह एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने हिन्दू और मुसलमान दोनों को ऊंचे पदों पर आसीन किया ।