प्रजामण्डल आंदोलन का संक्षेप में वर्णन करें ।
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प्रजामंडल आन्दोलन
शेष भारत के अनुरूप राजस्थान में भी अंग्रेजों, निरकुंश राजतंत्र तथा अत्याचारी सामन्तों के प्रति घोर असन्तोष व्याप्त था। उनके असन्तोष को मूर्तरूप देने के लिए संगठन की आवश्यकता थी। वैसे राजस्थान में 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में संगठनों तथा संस्थाओं का निर्माण होने लग गया था। लेकिन 1919 ई. में राजस्थान सेवा संघ के स्थापित हो जाने से जनता की अभिव्यक्ति के लिए एक सशक्त माध्यम मिल गया। 1920 से 1929 तक राजस्थान में होने वाले कृषक आन्दोलन का नेतृत्व इसी संघ के द्वारा किया गया था। 1919 ई. में अन्य महत्वपूर्ण संगठन का निर्माण हुआ, जिसका नाम "राजपूताना-मध्यभारत सभा" रखा गया। इस सभा का उद्देश्य शासकों और सामन्ती जुल्मों के विरूद्ध आवाज उठाना था। संगठन निर्माण की प्रक्रिया में 1927 में उठाया गया जब अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का निर्माण किया गया। परन्तु राजस्थान के विभिन्न राज्यों में ऐसे संगठन का अभाव था जिसका ध्येय पूरी रियासत हो। इतना ही नहीं अखिल भारतीय कांग्रेस भी रियासतों के मामलों में उदासीन ही रही किन्तु हरिपुरा कांग्रेस में स्थिति में परिवर्तन आया और 1938 के इस अधिवेश में रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी परिणामस्वरूप राजस्थान के विभिन्न राज्यों में प्रजामंडलों की स्थापना हुई। अब राजस्थानी रियासतों का आन्दोलन मुख्यतः इसी संस्था के नेतृत्व में लड़ा जाने लगा।