प्रकाश बनकर कवी की क्या-क्या करने की अभिलाषा है
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कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने 'पुष्प की अभिलाषा' कविता के माध्यम से राष्ट्र पर प्राण निछावर करने की अभिलाषा प्रकट की है । जिस प्रकार समुद्र में अनेक लहरें उठती और विलीन होती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के मन में तरह-तरह की इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं । संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो जिस की कोई अभिलाषा न हो
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कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने 'पुष्प की अभिलाषा' कविता के माध्यम से राष्ट्र पर प्राण निछावर करने की अभिलाषा प्रकट की है । जिस प्रकार समुद्र में अनेक लहरें उठती और विलीन होती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के मन में तरह-तरह की इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं
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