प्रकृति अपनी स्थिरता कुल्यो खो रही है ?
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हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि छोटे सूक्ष्मजीवों द्वारा मिटा दी जा सकती है। कोरोनोवायरस महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि यह सामूहिक विकास और समृद्धि को परिभाषित करने का सही समय है, जो पारिस्थितिक सम्पन्नता के संदर्भ में मापी जा सके न कि बढ़ती आय के स्तर के रूप में।
पिछले दो दशकों में, सार्स, मर्स, इबोला, निपाह और अब कोरोना वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को हिला दिया है। प्रकृति रीसेट बटन दबा रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं भारी गिरावट की स्थिति में हैं। वायरस के प्रकोप का यह प्रकार और पैमाना हमारे जीवनकाल में अपनी तरह का पहला है।
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